0
0
Read Time42 Second
अपने दिल की हर बात लिखता रहा
दिन क्या तमाम रात लिखता रहा
एक पल भी आया न मुझको सुकून
मैं अपने ही हालात लिखता रहा
लम्हा कभी खुशी का तो कभी गम का
खुद से ही किये सवालात लिखता रहा
लोग शायर मुझको समझने लगे
जबकि मैं अपने ख्यालात लिखता रहा
टीस को समझे ही नही वाह कहते रहे
दो पल की थी मुलाकात लिखता रहा
मिट्टी से उपजा हूँ, मिट्टी में दफन होना है
मैं अपनी इतनी सी औकात लिखता रहा
-किशोर छिपेश्वर”सागर”
भटेरा चौकी
बालाघाट
Post Views:
233