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अपने दिल की हर बात लिखता रहा
दिन क्या तमाम रात लिखता रहा
एक पल भी आया न मुझको सुकून
मैं अपने ही हालात लिखता रहा
लम्हा कभी खुशी का तो कभी गम का
खुद से ही किये सवालात लिखता रहा
लोग शायर मुझको समझने लगे
जबकि मैं अपने ख्यालात लिखता रहा
टीस को समझे ही नही वाह कहते रहे
दो पल की थी मुलाकात लिखता रहा
मिट्टी से उपजा हूँ, मिट्टी में दफन होना है
मैं अपनी इतनी सी औकात लिखता रहा
-किशोर छिपेश्वर”सागर”
भटेरा चौकी
बालाघाट
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