
सर्द हवाएं सर्दी की,
तन मन को बहुत सताती हैं।
डर जाती हैं अमीरों से,
गरीबों को आँख दिखाती हैं।
ना पैरों में जूते ,चप्पल,
ना ही मोजों की जोड़ी है।
ना तन पर हैं ऊनी कपड़े,
ना ही सर पे टोपी है।
ना कम्बल है ना है रजाई,
ना मखमली बिछावन है।
बेबसी में बेबस लोगों का,
क्या बसन्त क्या सावन है।
अलाव जला कूड़े कचरे से,
सर्दी से राहत पाते हैं,
ऐसी भीषण सर्दी में जाने,
कैसे गरीब सो पाते हैं?
सर्द हवा के सर्द थपेड़े,
तन पर कोड़े बरसाते हैं।
ऐसे में मेघा काले देख,
बेबस बहुत थर्राते हैं।
फ़टे पुराने चीथड़ों से,
ये अपना तन छुपाते हैं।
छोटी छोटी खुशियों से,
अपने को धन्य बनाते हैं।
अपनों का पेट भरने को,
दिन रात ये मेहनत करते हैं।
कोहरे की मोटी चादर ओढ़,
ये घर से रोज निकलते हैं।
मिले ना जब काम कोई,
तो भूखे ही सो जाते हैं।
लेकर कल आस बेचारे,
किस्मत कोस रह जाते हैं।
आओ हम सब मिलकर,
मानवता का धर्म निभाएं।
बेबसी में बेबस लोगों का,
जीवन खुशहाल बनाएं।
स्वरचित
सपना (स. अ.)
जनपद-औरैया