बहुत दुख है जीवन में
जो कम होता ही नहीं।
बहुत कम है सुख अब
जो गगार में भरता नहीं।
सुख और दुख में अब
कोई अंतर नहीं दिखता।
असल में देखे तो हम
दुखी है दोनो ही जन।।
जो दुखी है वो रोता है
सुखी वालो को देखकर।
जो सुखी है वो भी रोता
ऊपर वालो के सुख देखकर।
जहाँ से हम देख रहे है
सुखी दोनो ही नहीं है।
तृसना इतनी ज्यादा है
जो पूरी हो सकती नहीं।।
रखो मन को शांत
तो सुखी तुम रहोगे।
बिना किसी को देखे
अगर तुम आगे बड़ोगे।
तो सफलता जिंदगी में
तुम्हें निश्चित ही मिलेगी।
और सुखदुख की परिभाषा
तुम जल्दी समझ लोगे।।
और सुखमय जीवन तुम
इसी संसार में बिताओगें।।
जय जिनेंद्र देव
संजय जैन (मुंबई)