
झलक आँखो में तुम्हारी
मुझे अपनी दिखती है।
बताओ जी क्या में
सही कह रहा हूँ।
रखो दिल पर तुम हाथ
बताओ अपने दिलकी बात।
क्या में सत्य बोल रहा हूँ
क्या में सच बोल रहा हूँ।।
खिलाखिला सा तुम्हारा
चंदन सा ये वदन।
महका देता है अपनी
खुशबू से घर आंगन।
पुन: रोनक लौटा दी
तुमने मेरे चेहरे पे।
भेज कर कुछ अपनी
चंद प्यारी तस्वीरे।।
रुला दिया था दिलको
अपनी तस्वीरो को मिटाके।
नहीं रुक रहे थे आँखो से
मोती जैसे आँसू।
तुम्हे विश्वास नहीं होता
कोई तुम्हारे लिए तड़पता है।
दिलो की महारानी को
कोई दिलवाला चाहता है।।
अमावस्या की रात में
निकल आया पूनम का चाँद।
बिखेर दी चांदनी तुमने
रातरानी के बागो में।
किया मदहोश मुझको
तुम्हारी मस्त निगाहों ने।
करू तरीफ कैसे में
तुम्हारी इन अदाओं का।।
कुछ और भी आपके
अंदर शायद चल रहा।
जुबा से आपके कोई
शब्द नहीं निकल रहा।
मुझे अपनी करनी का फल
आपके मौन से मिल रहा।
शायद मैंने कुछ गलत
आप पर लिख दिया।।
जय जिनेंद्र देव
संजय जैन (मुंबई)