मिल जाए गर नेह..

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pramila
मैं तपती धरती हूँ प्रियतम,
तुम पावस की हो जल धार
मिल जाए गर नेह तुम्हारा
मना लूं मैं भी एक त्यौहार।

जब-जब खिली चांदनी छत पर,
तारों संग बारात लिए
चुनर डाल चली सिर ऊपर
शरमाई मधुमास लिए
पायजेब ही शोर मचाए
सौतन-सा करती व्यवहार।मिल जाए….।।

छोटी-सी बदली ने आकर
जल ही जल ही चहुँओर किया
रीते पनघट भर गए फिर से
ये कैसा अनुदान किया मछली ही प्यासी मर जाए करती जीवन जल पर वार।मिल जाए…..।

कली-कली सूरज-सी दहकी
मन में एक महताब लिए,
अन्तस में भरती सुगंध को
मधुमय इक एहसास लिए
दुख में सुख में सम रहती है सहती पावस की बौछार। मिल जाए…।।

                                                                             #प्रमिला पान्डेय

परिचय : उत्तरप्रदेश के कानपुर से प्रमिला पान्डेय का नाता है। आप १९६१ में जन्मी और परास्नातक (हिन्दी)की शिक्षा ली है। लेखन में गीत,ग़ज़ल, छंद,मुक्तक और दोहे रचती हैं। हिन्दी गद्य में साहित्यिक उपन्यास(छाॅहो चाहति छाॅह)आ चुका है। आपने साहित्य गौरव सम्मान,सशक्त लेखनी सम्मान आदि पाए हैं।

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