नई शिक्षा नीति और राजभाषा संवर्धन

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.. विचारों, वक्तव्यों, घोषणाओं तथा नियमों से हम स्वयं को हिंदी के जितने करीब महसूस करते हैं,उतना हम हैं नहीं। वास्तव में हम उससे दूर होते जा रहे हैं।
वरना आज हिंदी या राजभाषा के विमर्श के लिए यूं सैकड़ों आयोजन करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती ।

कभी अंग्रेजी भाषा के साथ इसकी बराबरी की बातें की जाती है तो कभी इसके मूल्यों के लुप्त होने की बात करते हुए उसके विकास की चिऔता पर चर्चा की जाती है।

इस संदर्भ में यदि हम अपने बारे में सोचें कि हम हैं कौन? भारत के नागरिक , जिन्हें भारतीय कहा जाता है । तो हमें किसी ऐसी भाषा में व्यवहार करना चाहिए, जो राष्ट्रीय भाषा बनने की योग्यता रखती हो, किंतु प्रजातंत्र की उदारता के दुरुपयोग के चलते यह विषय सियासी षडयंत्र का हथकंडा बन कर रह गया है। यह बडा़ ही दुर्भाग्यपूर्ण है। मैं इसे दुर्भाग्यपूर्ण इसलिए भी कह रही हूं क्योंकि म़ैं विश्व के कई छोटे बड़े देशों की यात्राएं कर चुकी हूं, जहां वार्तालाप के दौरान मुझे इस बात के प्रमाण मिले कि भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी है। परंतु हमारे ही देश में प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली और धर्मनिरपेक्षता की आड़ में हिंदी के प्रयोग के आग्रह को “थोपा जाना” कहा जाता है ।

हमने हिंदी को संघ की राजभाषा घोषित करके आत्मसंतोष कर लेना ही पर्याप्त समझ लिया । किंतु वहां भी अंग्रेजी के समर्थकों का ध्यान रखना पड़ा। संविधान के अनुच्छेद 343 (1 ) के अनुसार संघ के सरकारी प्रयोजनों के लिए राजभाषा हिंदी होगी और लिपि देवनागरी होगी तथा 34 3{1 } ख में अंकों कू लिए उधका अंतर्रारष्ट्रीय स्वरूप मान्य होगा।

उक्त प्रावधानों से स्पष्ट होता है कि तुष्टीकरण की नीति अपनाकर हम (सरकार) संतुष्ट हो गए।
15 वर्षों की अवधि तक अंग्रेजी भाषा का प्रयोग हिंदी के साथ साथ यथावत सरकार के प्रयोजनो़ंं में चलता रहेगा। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो भारतीय संघ के लिए दो राजभाषाएं मान्य हुई हिंदी और अंग्रेजी।
1963 के राजभाषा अधिनियम की धारा 3 (3 ) के तहत सामान्य आदेश (परिभाषा में इनके प्रकारों का उल्लेख उपलब्ध है)
हिंदी और अंग्रेजी दोनों में साथ साथ जारी होंगे ।इसका अनुपालन कर्ताओं द्वारा अमल में लाने में अपने विवेक का उपयोग करते हुए केवल अंग्रेजी में जारी किए जाते हैं । एक राजभाषा अधिकारी होने के नाते मुझसे कार्यशालाओं म़े अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों में से सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न होता था राजभाषा हिंदी का अधिक से अधिक उपयोग हो, इसके लिए आपकी दृष्टि में क्या समाधान है? विवेक शक्ति के आधार पर मेरा उत्तर सदैव एक ही रहा कि आप लोग ही कुछ कर सकते हैं। अगले प्रश्न “कैसे?” का जवाब भी बाकी होता था । एक पीढ़ी तक प्रतीक्षा करनी होगी। इस देश में आपको नई पीढी के दिलो में हिंदी के प्रति श्रद्धा और आत्मीयता को जागृत करना होगा। वह भी शिक्षा के माध्यम से।
नई शिक्षा नीति के बारे में जानकारी प्राप्त होने के बाद स्वयं पर ही विश्वास नहीं हुआ। कहीं ना कहीं मेरे विचारों की साम्यता इसमें दृष्टिगोचर होती है।

अनंत काल से शिक्षा और भाषा का परस्पर चोली-दामन का साथ रहा है। दरअसल हम बुनियाद (शिक्षा को) छोड़कर राजभाषा हिंदी के प्रयोग के प्रयास कर रहे थे।

नई शिक्षा नीति 34 वर्षों के पश्चात (1986 के बाद से) बनाई गई है, जिसमें बच्चों की बुनियादी शिक्षा व्यवस्था पर जोर दिया गया है। 2019 में नई शिक्षा नीति एनईपी का मसौदा तैयार किया गया तथा जुलाई 2020 के अंत में इसकी घोषणा की गई। कुछ उल्लेखनीय परिवर्तन नई शिक्षा नीति में किए गए हैं:-

1 सर्वप्रथम मानव संसाधन मंत्रालय का नाम बदलकर इसे शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है ।।
2दो सितंबर को सरकार ने इसके बिल को मंजूरी दी
3 इस नीति के अनुसार अब संस्कृत के साथ-साथ अन्य भारतीय भाषाओं पर भी बल दिया जाएगा ।
4 नेशनल मिशन की स्थापना की जाएगी तथा फाउंडेशन लिटरेसी वह न्यूमैरेसी पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
*5 एक्स्ट्रा करिकुलम एक्टिविटीज को मेन करिकुलम में शामिल किया जाएगा ।यह करिकुलम ,’अर्ली चाइल्डहुड केयर’ एजुकेशन के लिए एन सी आर आई
द्वारा तैयार किया जाएगा ।
इसे 3 से 6 वर्ष तक के बच्चों के लिए तैयार किया जाएगा।
*6* म्यूजिक आर्ट्स आदी को वोकेशनल एजुकेशन में शामिल किया जाएगा और उन्हें बढ़ावा दिया जाएगा । साथ ही इसे मुख्य पाठ्यक्रम में जोड़ा जाएगा। यह छठी कक्षा के बाद से आरंभ किया जाना है । इसके लिए इंटर्नशिप भी की भी व्यवस्था की जाएगी।
*7 3 साल से 6 साल के बीच के बच्चों को अमेरिकन पेटर्न पर
प्ले बेस्ड स्कूलिंग दी जाएगी ।
*8* व्यवसायिक वोकेशनल शिक्षा के एकीकरण के लिए राष्ट्रीय समिति लोक विद्या का गठन किया जाएगा ।
नई शिक्षा नीति के उक्त बिंदुओं पर अमल होने की स्थिति में हमारी नई पीढ़ी भाषा की दृष्टि से भी समृद्ध होगी जिन्हें आगे चलकर राजभाषा नियमों के अनुपालन का दबाव महसूस नहीं होगा। इसके अलावा वे आत्मनिर्भर बनेंगे और उन्हें रोजगार के नए आयाम उपलब्ध होंगे ।
इसके अलावा उच्च शिक्षा के लिए भी आवश्यक कदम उठाए गए हैं ‘-यूएस की एनएसएफ (नेशनल साइंस फाउंडेशन) की तर्ज पर हमारे यहां भी एनआरएफ (नेशनल रिसर्च फाउंडेशन ) की स्थापना की जाएगी । इसमें विज्ञान के साथ-साथ सोशल साइंसेज को भी समाविष्ट किया जाएगा और इन्हें ई पाठ्यक्रम में भी शामिल किया जाएगा।

इसके लिए राष्ट्रीय शैक्षिक तकनीकी फोरम भी बनाया जा रहा है।
बिना एमफिल किए अब छात्र सीधे पीएचडी के लिए आवेदन कर सकेंगे।
उच्च शिक्षा विभाग के सचिव के अनुसार उच्च शिक्षा में मल्टीपल एडमिट और एग्जिट सिस्टम तैयार किया जाएगा, जिसके तहत प्रथम वर्ष पास करने पर सर्टिफिकेट दूसरा वर्ष पास करने पर डिप्लोमा तथा यथानिर्धारित तीसरा या चौथा वर्ष पास करने पर डिग्री की उपाधि दी जाएगी ।प्रथम वर्ष के बाद आगे किसी भी कारणवश पढ़ाई न कर पाने पर उसे सर्टिफिकेट कोर्स का प्रमाण पत्र मिलेगा .
नई शिक्षा नीति के मानदंड सभी के लिए समान होंगे, ताकि शिक्षा की गुणवता. में सुधार हो सके।

उच्च शिक्षा के संदर्भ में विश्व विद्यालयों द्वारा लिए जाने वाले शुल्क में पारदर्शिता रखी जाएगी।
वैश्विक विद्यालय केम्पस खोले जाने की अनुमति दी जा सकेगी, जहां विदेशी छात्र प्रवेश लेकर उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे।

 उक्त बिदुओं के आधार पर हमारे समाज के सभी वर्गों के युवाओं के लिए उच्च शिक्षा सुलभ.होगी।

बचपन से ही व्यावसायिक प्रशिक्षण के कारण बच्चों में आत्मविश्वास उत्पन्न होगा। युवा होते होते उनकी बेरोजगारी की समस्या का निदान हो चुका होगा।

मातृभाषा में शिक्षण होने तथा अन्य भारती य भाषाओं के वैकल्पिक चयन से बच्चों मैं बुनियादी तौर पर मातृभाषा तथा भारतीय भाषाओं के प्रति निष्ठा, आत्मीयता और विश्वास जागृत होगा। उन्हें युवावस्था में कहीं भी काम करने पर राजभाषा हिंदी के प्रयोग में किसी प्रकार.की हिचक या परेशानी नहीं होगी।

हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी के शब्दों में कहा जाए जैसा बचपन होगा, वैसा भविष्य होगा।

डा. चंद्रा सायता
इंदौर

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।