जिद:विवेक के बिना..

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sanjay
 ‘जिद’ शब्द की परिभाषा  यानी बिना विवेक के जो मांग की जाती है,और उसकी पूर्ति तत्काल हो जाए ,तो वह जिद है।
बच्चों में विवेक की कमी होती है और मांगी गई वस्तु उसी समय चाहते हैं। न मिले तो जिद अपने सक्रिय रुप उपद्रव में बदल जाती है, लेकिन अगर जिद विवेक से जुड़े तो वह संकल्प में बदल जाती है। जिस जिद से हम बड़े-बड़े संकल्प प्राप्त करते हैं,उसके नीचे संकल्प काम कर रहा होता है,क्योंकि अपरिपक्व संकल्प जिद है और परिपक्व जिद संकल्प है।
 जिद करते बच्चों को पूरी तरह से न नकारें ,क्योंकि उस समय उनकी उर्जा भीतर उफान पर होती हैं। यदि उस उर्जा को ठीक से आकार दें तो वह संकल्प में बदल जाएगी,इसलिए बच्चों को सिखाकर बड़े भी सीखें कि कुछ बातों का ध्यान रखें कि इससे हमारी कार्य क्षमता का विकास होगा या नहीं, हमारा चित्त जागरूक बनेगा या नहीं। जिद की पूर्ति के बाद शांति मिलेगी या नहीं,जिद के दौरान पैदा उर्जा से हमारे मस्तिष्क की तरंगें प्रभावित होती है। कभी-कभी तो तेज सिरदर्द या ब्रेन हेमरेज तक हो सकता है।                        बाहरी वस्तुओं को पाने की जिदों को थोड़ा भीतर कर लिया तो पाएंगे कि,जिस सुख की तलाश में हम बाहर हैं वह भीतर भी है,बल्कि उससे अच्छी स्थिति में है। बाहर के सुख को नकारना नहीं है,पर भीतर के सुख को भी न भूलें।
‌जो व्यक्ति इस तथ्य को सही तरीके से समझ गया उसका जीवन एकदम से खुशमय हो जाता है। जिद्दी होना अच्छी बात है पर किस कार्य के लिए.., ये सोचना और जानना बहुत जरूरी है। इंसान का स्वभाव कभी भी शांत नहीं रहता,कुछ-न-कुछ तो चलता ही रहता है। सकारात्मक जिद जीवन में अनेक खुशियांऔर सफलता लाती है ?और बिना सोचे समझे जिद करना यानि कि, अपने खुशहाल जीवन को नरक बनाना है।

                                                                      #संजय जैन

परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों  पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से  कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें  सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की  शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।

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संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।