न मैं चल ही सका,
न मैं रो ही सका।
जिंदगी को मानो,
व्यार्थ ही गमा दिया।
तभी तो तन्हा जीता हूँ।
और आज भी,
प्यार लिए तरसता हूँ।
पर प्यार करने वाला,
कोई भी साथ नही आया।
इसलिए तन्हा जिंदगी
आज तक जी रहा हूँ।।
बहुत ही जला हूँ,
इस जामने में।
कई बार मार हूँ,
इस जमाने में।
किसीको भी,
तरस नही आया।
और मैं बर्बादियों का,
जश्न मानता रहा।
डूब गया हूँ अब,
मैं उस सागर में।
जिसकी गहराई को
कोई नाप न सका।।
माना कि मैं जिद्दी हूँ,
बातों से मुकरता नहीं।
जमाने की चकाचौंध ने,
बहुत डाला मुझे पर असर।
पर फिर भी सोच मेरी,
वो बदल न सके।
इसलिए माँ भारती को,
कभी भी छोड़ा सके नहीं।
इसलिए छोड़कर चले गये,
कुछ मुझे अपने चहाने वाले।
पर मैं हिंदी साहित्य को,
कभी छोड़ सकता नहीं।।
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।