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कोई हलचल न ही रवानी है।
कैसी ‘ठहरी-सी’ जिंदगानी है।।
तू जो कह दे तो बात हो कोई।
वर्ना हर बात ही बे’मानी है।।
क्यूँ बहारों की आरजू में ही।
बेवफा ये फ़ना जवानी है।।
पेड़-पौधे ज़मीं नदी जैसी।
प्यार ही इक अमर निशानी है।।
दूर होकर नहीं जुदा तुमसे।
खूबसूरत ये सच बयानी है।।
दिल ,फरेबी न मानता तुझको।
ये मुकद्दर ही बदगुमानी है।।
आँख नम कायनात गुमसुम-सी।
इस ‘अधर’ पर वही कहानी है।।
#शुभा शुक्ला मिश्रा ‘अधर’
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