आपस में मिल-जुलकर रहें

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1947 के बंटवारे का दर्द वो ही समझ सकते हैं, जिन्होंने उस दर्द को स्वयं सहा है | अगर हम समझ पाते तो आज हम सब भारतीय होते न कि गुजराती, मराठी, पंजाबी, बिहारी, दक्षिणी-पश्चिमी, उत्तरी… | आजादी के बाद भी हमने आजाद भारत में तमाम दंगे किये हैं | कभी राजनीति के शिकार होकर तो कभी धर्म में अंधे होकर | राम-रहीम की लड़ाई में मानवता कब दफन हो गई पता भी नहीं चला |
क्या भारत की नई पीढ़ी जानती है कि 1947 के दंगे कितने भीभत्स, भयानक थे | कत्ल, मारकाट, बलात्कार जैसे घिनौने कुकर्म किये गये वो भी सौ – दो सौ की संख्या में नहीं हजारों हजार की संख्या में, अपहरण, लूट, विश्वासघात, धर्मांतरण की ऐसी आँधी आई थी उस दौर में, जिन लेखकों ने उस बंटवारे की घटना का जिक्र किया है वे रो-रोकर ही लिख पाये | 
बंटवारे की हैवानियत का सबसे बड़ा शिकार पंजाब हुआ था | उस दंगे में इंसान ही इंसान के खून का प्यासा हो गया था | दहशत भरे उस काल में करीब 10 लाख से अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था | क्या हम बीते खूनी इतिहास से कुछ सीख लेंगे | आपको बतादें कि बंटवारे के जिम्मेदार हमारे देश के ही कुछ स्वार्थी नेता थे | और आज भी कुछ स्वार्थी नेता अपनी स्वार्थ भरी रोटियां सेकने के लिए दंगों को भड़काने का कार्य करते हैं |  साथियों भारत में अलग-अलग भाषायें, रीति-रिवाज, धर्म, पहनावा है, लेकिन हम सब भारतीय हैं | हम किसी एक प्रांत तक सीमित न रहें | हम जैसे भी हैं, हैं तो भारतवासी | 
हमारा संबिधान, हमारे धर्म हमें एक रहने की शिक्षा देते हैं | मानव मात्र ही नहीं सम्पूर्ण जीवजन्तुओं से प्रेम करने की शिक्षा देते हैं हमारे महापुरुष | साथियों! किसी के बहकावे में न आयें, हमेशा अपनी मातृभूमि – जन्मभूमि की सेवा में तत्पर रहें | आपस में मिल-जुलकर रहें | क्योंकि आज हमें जरूरत है इंसानियत की, आदमी आदमी की सहायता करे…  एक-दूसरे की खुशियों में शामिल हों, एक-दूसरे के दुख दर्द बांटें | हम नफरत कब तक करते रहेंगे ,कब तक एक-दूसरे का अपमान करते रहेंगे | यह सारी प्रथ्वी प्यार स्नेह की भूखी है | माफ कीजिये दोस्तों… धर्म से बढ़कर इंसानियत है | इंसानियत हमारे साथ पैदा होती है और हमारे जाने के बाद भी जिंदा रहती है | धर्म बाद में पैदा होता है और हमारे साथ ही मिट जाता है | हमें अपनी आत्मा विषैली नहीं, अमृतमयी बनानी है | खून-खराबे से दूर मानवी सज्जनता में जीना है | यही हमारे धर्म हमें शिक्षा देते हैं | तो आइये मित्रों आपस में मिलजुलकर रहें |
नेताओं के बहकावे में कतई नहीं आयें | क्या आपने कभी किसी नेता या उसके परिवारी जन को दंगों की भेंट चढते देखा है | और तो और उस धर्म गुरू और उसके परिवारी जन को दंगों में मरते-कटते देखा है जो कहते हैं हमारा धर्म संकट में है, नहीं न तो भले मानुषों आपस में लड़ो मत सवाल करो सरकार से भूख पर, गरीबी पर, बेरोजगारी पर, शिक्षा पर न कि धर्म पर… 
तुम भूखें नंगों ने कभी सोचा है कि जिस धर्म गुरू, नेता, पार्टी का झंड़ा उठाये फिरते हो उसकी सम्पत्ति कितनी है | सच्चाई सुनोगे तो शायद बेहोश हो जाओगे | अरे भुल्लकड़ भारतीय जनता अपने इतिहास से कुछ सीखो और धर्म-वर्म को भूलकर अपने परिवार, अपने राष्ट्र की सोचो | ये हिंदू – मुस्लिम, सिख – ईसाई वाला खेल बहुत खेल लिया, अब बंद करो | जब राष्ट्र का जन-धन जलकर खाक हो जाता है तब इस देश की पुलिस – अन्य सुरक्षा बल हरकत में आते हैं और जब मजदूर, आदिवासी, किसान अपने हक की थोड़ी सी आवाज उठायें तो बड़ी बेदर्दी से उनकी आवाज दबा दी जाती है | पता है क्यों? क्योंकि यह सब स्क्रिप्ट द्वारा किया जाता है | सारी पटकथा नेताओं द्वारा लिखी जाती है | पुलिस – सेना तो बस नेताओं के हाथों की कठपुतली बनकर रह जाते हैं | उनके इसारे पर ही अपना खेल दिखाते रहते हैं | 

#मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

परिचय : मुकेश कुमार ऋषि वर्मा का जन्म-५ अगस्त १९९३ को हुआ हैl आपकी शिक्षा-एम.ए. हैl आपका निवास उत्तर प्रदेश के गाँव रिहावली (डाक तारौली गुर्जर-फतेहाबाद)में हैl प्रकाशन में `आजादी को खोना ना` और `संघर्ष पथ`(काव्य संग्रह) हैंl लेखन,अभिनय, पत्रकारिता तथा चित्रकारी में आपकी बहुत रूचि हैl आप सदस्य और पदाधिकारी के रूप में मीडिया सहित कई महासंघ और दल तथा साहित्य की स्थानीय अकादमी से भी जुड़े हुए हैं तो मुंबई में फिल्मस एण्ड टेलीविजन संस्थान में साझेदार भी हैंl ऐसे ही ऋषि वैदिक साहित्य पुस्तकालय का संचालन भी करते हैंl आपकी आजीविका का साधन कृषि और अन्य हैl

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