मरुस्थलीकरण और सूखा एक गंभीर समस्या

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उपजाऊ जमीन का खराब होकर बंजर हो जाने की प्रक्रिया मरुस्थलीकरण कहलाती है, जिसमें जलवायु परिवर्तन तथा मानवीय गतिविधियों समेत अन्य कई कारणों से शुष्क,अर्द्ध-शुष्क और निर्जल अर्द्ध-नम इलाकों की जमीन रेगिस्तान में बदल जाती है, फलस्वरूप जमीन की उत्पादन क्षमता में भारी कमी हो जाती है।भारत में लगभग 30 प्रतिशत भूमि क्षरण से प्रभावित है। मरुस्थलीकरण व सूखे की बढ़ती भयावह स्थिति को देखते हुए इससे मुकाबला करने के लिए वैश्विक स्तर पर जागरूकता के प्रचार-प्रसार की आवश्यकता महसूस की गई।संयुक्त राष्ट्र संघ की आम सभा में सन् 1994 में मरुस्थलीकरण रोकथाम का प्रस्ताव रखा गया जिसका अनुमोदन दिसम्बर 1996 में किया गया। वहीं 14 अक्टूबर 1994 को भारत ने मरुस्थलीकरण को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र यूएनसीसीडी(United Nations Convention to Combat Desertification)पर हस्ताक्षर किये जिसके पश्चात् वर्ष 1995 से मरुस्थलीकरण को रोकने के लिए व्यापक कदम उठाए गए।
थार के मरुस्थल में प्रतिवर्ष 13000 एकड़ से अधिक भूमि की वृद्धि दर्ज की जा रही है। कुछ वर्षों बाद सहारा रेगिस्तान के क्षेत्रफल में भी एक ऐसी ही बड़ी बढ़ोतरी हो जायेगी। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक रेगिस्तान के फैलते दायरे के चलते आने वाले समय में अन्न की कमी पड़ सकती है। विदित है कि आज प्रति मिनट 23 हेक्टेयर उपजाऊ भूमि बंजर भूमि में तब्दील हो रही है जिसके परिणामस्वरूप हर साल खाद्यान्न उत्पादन में दो करोड़ टन की कमी आ रही है। गहन खेती के कारण 1980 से अब तक धरती की एक-चौथाई उपजाऊ भूमि नष्ट हो चुकी है। संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक बढ़ते मरुस्थलीकरण के कारण 2025 तक दुनिया के दो तिहाई लोग जल संकट की परिस्थितियों में रहने को मजबूर हों जायेंगे ऐसे में मरुस्थलीकरण के चलते विस्थापन बढ़ेगा। नतीजतन 2045 तक करीब 13 करोड़ से ज्यादा लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा सकता है।

भूमि को मरुस्थल एवं सूखा में परिवर्तित करने वाले प्रमुख कारण:-
1.प्राकृतिक कारण:- भूमि को मरुस्थल मे परिवर्तित करने वाले प्रमुख प्राकृतिक कारण निम्नलिखित हैं…
(क)वर्षा न होने से सूखा पड़ना (ख)तेज गर्म हवाओं का चलना (ग)वन संपदा को अंधाधुंध काटे जाने से वातावरण में आद्रता की कमी (घ)जलवायु में अनिश्चित बदलाव (ङ)धूल भरी आंधी (च)वाष्पीकरण अधिक होने से मृदा लवणता बढ़ना (छ)अत्यधिक ताप व गर्मी।
2.कृत्रिम कारण:- भूमि को मरुस्थल मे परिवर्तित करने वाले प्रमुख कृत्रिम कारण निम्नलिखित हैं…
(क)भूजल का अनियमित तथा अत्यधिक दोहन (ख)वनों की अंधाधुंध कटाई (ग)अत्यधिक खनन कार्य (घ)खराब कृषि सिंचाई प्रणाली (ङ)औद्योगीकरण एवं शहरीकरण का विस्तार (च)शिफ्टिंग कल्टिवेशन, दावानल आदि भूमिक्षरण के अन्य कारण रहे हैं।
मरुस्थलीकरण और सूखा के रोकथाम के उपाय:-
मरुस्थलीकरण आज दुनिया के समक्ष एक बड़ी चुनौती पेश कर रही है।इसके कारण आज सांस, फेफड़े, सिरदर्द आदि बीमारियों की संख्या बढ़ी है।इसके रोकथाम के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं..
(क)धरती पर वन सम्पदा के संरक्षण के लिए वृक्षों को काटने से रोका जाना चाहिए। (ख)व्यापक स्तर पर वृक्षारोपण कार्यक्रम को चलाया जाना चाहिए तथा रिक्त भूमि पर, पार्कों में सड़कों के किनारे व खेतों की मेड़ों पर पेड़ लगायें जायें। (ग)मरुस्थलीकरण से बचाव के लिए जल संसाधनों का संरक्षण तथा समुचित मात्रा में विवेकपूर्ण उपयोग करना चाहिए (घ)जलवायु अनुकूल पौधों-वृक्षों को उगाया जाए। (ङ)पशु चरागाहों पर उचित मानवीय नियंत्रण स्थापित करना चाहिए। (च)किसानों को कृषि में शुष्क कृषि प्रणालियों को प्रयोग में लाने को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। (छ)मरुस्थलीय जमीन की लवणता और क्षारीयता कम करने के लिए वैज्ञानिक तरीकों का इस्तेमाल करना चाहिए। (ज)सरकार द्वारा संचालित कार्यक्रम:-वर्तमान में मिट्टी के क्षरण एवं सूखा को रोकने के लिए सरकार द्वारा विभिन्न योजनाएँ चलायी जा रही हैं जैसे- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, मुद्रा स्वास्थ्य कार्ड योजना, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, प्रतिबूंद अधिक फसल योजना आदि।
उल्लेखनीय है कि सरकार ने इन योजनाओं में भारी मात्र में धन आवंटित किया है। इन योजनाओं के अतिरिक्त दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना, स्वच्छ भारत मिशन, राष्ट्रीय हरित भारत मिशन और राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम, ऐसी प्रमुख योजनाएँ है, जो जमीनों के रेतीले होने, जमीनों की गुणवत्ता कम होने और सूखे की समस्याओं से निपटने के लिए काम करती है।मरुस्थलीकरण एवं सूखा से निपटने के लिए विश्व मरुस्थलीकरण एवं सूखा रोकथाम दिवस वैश्विक स्तर पर जन-जागरूकता फैलाने का ऐसा प्रयास है जिसमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग की अपेक्षा की जाती है। विश्व बंधुत्व की भावना के साथ इसमें भागीदारी सुनिश्चित करना, धरती तथा पर्यावरण को बचाने में सार्थक प्रयास साबित हो सकता है।

लेखक
नवनीत शुक्ल(शिक्षक)
रायबरेली(उ०प्र०), भारत

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आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।