छिछोरे
हस्ते-खेलते,गुदगुदाते– सफलता और असफलता कि उम्दा कहानी छिछोरे
निर्देशक
नीतेश तिवारी
अदाकार
सुशांत राजपूत, शृद्धा कपूर, वरूण शर्मा, प्रतीक बब्बर, ताहिर राज भसीन, नवीन पोलीशेट्टी, सहर्ष कुमार,
संगीत
प्रीतम, समीरूद्दिन
प्रस्तावना
आपने कालेज लाइफ पर कई फिल्मों का तुल्फ लिया है, जैसे मेरे अपने, जो जीता वही सिकन्दर, थ्री इडियट्स और बहुत सी फिल्मे, कालेज लाइफ में लड़ाई, झगड़ा, प्यार मुहब्बत, संजीदगी, दोस्ती तकरार का मिश्रण ताउम्र साथ चलता है,इसी तर्ज पर यह फ़िल्म बुनी गई है,
फ़िल्म की कहानी बेहतर और बमयार हो तो स्टार्स की ज़रूरत नही पड़ती
नीतीश का ह्यूमर और कॉमेडी पर अच्छी पकड़ के साथ इमोशनल ग्रिप भी शानदार होती है, उन्होंने अपने इस टेलेंट का बखूबी इस्तेमाल किया है यहां पर भी, छिछोरे फ़िल्म कालेज लाइफ पर है जो कि आपको मजबूर कर देती है कुर्सी से चिपके रहने के लिए
कहानी
शुरू होती हैं एक तलाक शुदा कपल एनी (सुशांत) माया (शृद्धा)से जिनका बेटा पढ़ाई के तनाव में खुद को असफल मान कर खुदकुशी की कोशिश करता है, अब उसका पिता अपने बेटे को उसकी और साथियो के कॉलेज की बीते किस्से कहानियां सुनाता है कि कैसे वह लूसर्स से विनर्स बने यही से फ़िल्म देखने का मज़ा दुगना हो जाता है, और आप इन किस्सों में खुद को खोजने लगते है, एनी, सेक्सा, बेवड़ा, ममी, एसिड, डेरिक और माया सात दोस्तो की कालेज लाइफ आपको गुदगुदाने, ठहाके के साथ आंखे नम भी कर जाती है
अदाकारी
सुशांत बेहतर अभिनेता है वह कदम दर कदर स्टारडम की तरफ अपने अभिनय से बढ़ रहे है
शृद्धा के पास ज्यादा तो कुछ था नही फ़िल्म में, लेकिन बुढ़ापे के किरदार में वह खुद को बड़ी सहजता से परोसती है,
सेक्सा के किरदार में वरूण शर्मा मस्त लगते है उनके अंदर से फुकरे का चूचा बाहर नही निकल रहा है, लेकिन वह ऐसे ही मस्त लगते है,, डेरिक के किरदार में ताहिर राज भसीन जमे है, गालियां देने का आदि एसिड नवीन पोलीशेट्टी भी मस्त लगे,बात बात पर मम्मी को याद करने वाले भीरू गुजराती का किरदार में तुषार पांडे, दारू में गोते लगाने वाला किरदार बेवड़ा सहर्ष शुक्ला ने बखूबी अंजाम दिया है
लंबे वक्त बाद दिखे प्रतीक अपनी अदाकारी से ज्येष्ठ छात्र रेगी के किरदार में हैरान कर गए, विलेंन वाली अनुभूति दे गए है,
निर्देशक
नीतीश तिवारी दंगल से खुद को साबित कर चुके है वह हास्य-व्यग्य के साथ आंखे नम कर देने की कला में माहिर है, वह कहानी पर कभी भी पकड़ ढीली नही करते, बड़ी सहजता से कहानी की माला में एक एक फूल गूंधते जाते है जिससे दर्शक फ़िल्म के अंत मे एक खूबसूरत माला लेकर सिनेमा हॉल से बाहर आता है जिसकी खुशबू कई दिनों तक आती रहती है,,
कमी फ़िल्म में,
फ़िल्म की लंबाई 144 मिनट को कम कीया जा सकती था,
फ़िल्म के शीर्षक छिछोरे से कोई किरदार मैच नही करता, एक भी किरदार छिछोरा नही लगता है, किरदारो के बुढ़ापे पर बेहतर काम होना चाहिए था, जिसमे आंगिक अभिनय(शारारिक अभिनय), वाचिक अभिनय(बोलने का तरीका), आहारिक(मेकअप कॉस्ट्यूम) तीनो पर काम मे कमी लगती है लेकिन तब तक आप फ़िल्म में इतने खो जाते है कि आप फ़िल्म में इन छोटी कमियो को नजरअंदाज कर करते हुवे फ़िल्म के साथ बह निकलते है,
क्यो देखे फ़िल्म
कालेज और होस्टल लाइफ का शानदार चित्रण, अभिप्रेरणा देती फ़िल्म , फ़िल्म में एक भी अश्लील संवाद नही है, फ़िल्म हास्य, व्यग्य दोस्ती, तकरार का शानदार गुलदस्ता है, जिसकी महक आपके साथ सिनेमा घर से बाहर तक आएगी
संगीत
अमिताभ भट्टाचार्य का लिखे गाने खेरियत और वो दिन दिल को छूते है जिसे प्रीतम ने संगीतबद्ध किया है,
सन्देश फ़िल्म से
सफलता के बाद का रास्ता तो सभी के पास होता है लेकिन असफलता के बाद क्या करना है, नाकामी के राक्षस को कैसे पछाड़ना है इस सन्देश के लिए फ़िल्म को देखा ही जाना चाहिए
फ़िल्म को
3.5 स्टार्स
#इदरीस खत्री
परिचय : इदरीस खत्री इंदौर के अभिनय जगत में 1993 से सतत रंगकर्म में सक्रिय हैं इसलिए किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं| इनका परिचय यही है कि,इन्होंने लगभग 130 नाटक और 1000 से ज्यादा शो में काम किया है। 11 बार राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व नाट्य निर्देशक के रूप में लगभग 35 कार्यशालाएं,10 लघु फिल्म और 3 हिन्दी फीचर फिल्म भी इनके खाते में है। आपने एलएलएम सहित एमबीए भी किया है। इंदौर में ही रहकर अभिनय प्रशिक्षण देते हैं। 10 साल से नेपथ्य नाट्य समूह में मुम्बई,गोवा और इंदौर में अभिनय अकादमी में लगातार अभिनय प्रशिक्षण दे रहे श्री खत्री धारावाहिकों और फिल्म लेखन में सतत कार्यरत हैं।