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धारण करती है सदा, जल थल का संसार।
जननी जैसे पालती, *धरती* जीवन सार।।
. २
भूमि उर्वरा देश की, उपजे वीर सपूत।
भारत माँ सम्मान हित, हो कुर्बान अकूत।।
. ३
पृथ्वी, पर्यावरण की , रक्षा कर इन्सान।
बिगड़ेगा यदि संतुलन, जीवन खतरे जान।।
. ४
धरा हमारी मातु सम, हम है इसके लाल।
रीत निभे बलिदान की,चली पुरातन काल।।
. ५
भू पर भारत देश का, गौरव गुरू समान।
स्वर्ण पखेरू शान है, आन बान अरमान।।
. ६
रसा रसातल से उठा,भू का कर उपकार।
धारे रूप वराह का, ईश्वर ले अवतार।।
. ७
चूनर हरित वसुंधरा, फसल खेत खलिहान।
मेड़ मेड़ पर पेड़ हो, हँसता मिले किसान।।
. ८
वसुधा के शृंगार वन, जीवन प्राकृत वन्य।
पर्यावरण विकास से, मानव जीवन धन्य।।
. ९
अचला चलती है सदा, घुर्णन से दिन रात।
रवि की करे परिक्रमा, लगे साल संज्ञात।।
. १०
क्षिति जल पावक अरु गगन,
. संगत मिले समीर।
जीव जीव में पाँच गुण,
. धारण, तजे शरीर।।
. ११
वारि इला पर साथ ही, प्राण वायु भरपूर।
इसीलिए जीवन यहाँ, सुन्दर प्राकृत नूर।।
. १२
मानस मानुष मेदिनी, बचे , बचे संसार।
संरक्षण करले सखे, रखें कुशल आचार।।
. १३
रखें विकेशी मान को, निज माता सम मान।
जगत मातु रखिए सखे, लगा प्रदूषण आन।।
. १४
क्षमा क्षमा करती सदा, मानव के अपराध।
हम भी मिल रक्षण करें,सबके मन हो साध।।
. १५
पेड़ अवनि की शान है, शीतल देते छाँव।
प्राणवायु भरपूर दे, लगा नगर पथ गाँव।।
. १६
भरते निर्मल बाँध सर, हरे अनंता ताप।
नीर प्रदूषण है सखे, हम सब को अभिशाप।।
. १७
वारि अन्न जीवन वसन, दिए सर्व सुख शान।
रहें तभी विश्वंभरा, रक्षण मय सम्मान।।
. १८
रखे स्थिरा धारण सदा, मानव तेरे भार।
करती निज कर्तव्य वह, करले कर्म सुधार।।
. १९
वृक्ष धरित्री पर हरे, वर्षा जल की आस।
खूब लगाओ पेड़ फिर, भावि बने विश्वास।।
. २०
धरणी पर जल है भरा,हिम सागर नद बंध।
खेती, पीने को नहीं, सोच मनुज मतिअंध।।
. २१
उर्वी पर है सिंधु सर, नदिया और पठार।
फसलें कानन पथ भवन,झेले गुरुतम भार।।
. २२
देश राज्य सीमा बना, ले हथियार नवीन।
क्यों लड़ते ,रहने यहीं, जेवर जोरु जमीन।।
. २३
धीरज से खोदें खनिज, करले भल पहचान।
रहे रत्नगर्भा अमर, अविरल रहें प्रमान।।
. २४
महि से रवि शशि दूर है, करते नेह प्रकाश।
चाहे तन से दूर हों, रखो प्रेम विश्वास।।
. २५
गंग अदिति पर ही बहे, भागीरथी प्रयास।
निर्मल रखनी है सदा, जैसे हरि आवास।।
. २६
आद्या सम हैं नारियाँ, धारक और महान।
सृष्टि चक्र इनसे चले, मत कर नर अपमान।।
. २७
जगती पर जीवन रहे, ईश्वर से अरदास।
जीवन भी साकार तब, होय प्रदूषण नाश।।
. २८
सहती धात्री देखिए, मानव के अतिचार।
मर्त्य जन्म शुभ कर्महित,करले खूब विचार।।
. २९
इसी निश्चला पर रहें, प्राकृत जीव अनंत।
सुर नर मुनि गंधर्व की, चाह बहार बसंत।।
. ३०
खोद रहे रत्नावती, बजरी पत्थर खेत।
मोती माणिक रत्न भी, खोजे स्वर्ण समेत।।
. ३१
वासुदेव श्रीकृष्ण से, सभी ईश अवतार।
माने माँ सम वसुमती, वीर मिटाए भार।।
. ३२
विपुला बड़ी विचित्र है,भरे खनिज भरपूर।
खोद जरूरत मानवी, मत कर माँ बेनूर।।
. ३३
शस्य श्यामला चाहते, श्यामा को घनश्याम।
मीरा, राधा श्याम को, सीता चाहति राम।।
. ३४
सहे सदा माता सहा, पूत , दुष्ट के दंश।
‘लाल’ मातु के जो कहे, मेटे खल कुल वंश।।
. ३५
धारे सागरमेखला, सागर सरिता सेतु।
पर्वत जंगल जीव ये, माता, सुत जन हेतु।।
. ३६
गौ, गौरैया, गिद्ध गुण, भूल रहा इंसान।
उपयोगी जनजीव ये, गो का हर अरमान।।
. ३७
धर्म,जातियाँ गोत्र से, मत कर जनअलगाव।
सूरज गोत्रा चंद्र के, रहे एक सम भाव।।
. ३८
क्यों ज्या को अपमानता, स्वारथ में इन्सान।
माता का सम्मान कर, जग है कर्म प्रधान।।
. ३९
इरा कभी देनी नहीं, जन्मत सीख सपूत।
रजपूतानी रीति थी, गर्वित जन रजपूत।।
. ४०
जन्म इड़ा पर भाग्य से,करले खूब सुकर्म।
स्वर्ग नर्क व्यापे नहीं, समझ धर्म का मर्म।।
. ४१
लड़े भोम हित भोमिया,शीश विहीन कबंध।
शर्मा बाबू लाल के, कुल में पुरा प्रबंध।।
नाम–बाबू लाल शर्मा
साहित्यिक उपनाम- बौहरा
जन्म स्थान – सिकन्दरा, दौसा(राज.)
वर्तमान पता- सिकन्दरा, दौसा (राज.)
राज्य- राजस्थान
शिक्षा-M.A, B.ED.
कार्यक्षेत्र- व.अध्यापक,राजकीय सेवा
सामाजिक क्षेत्र- बेटी बचाओ ..बेटी पढाओ अभियान,सामाजिक सुधार
लेखन विधा -कविता, कहानी,उपन्यास,दोहे
सम्मान-शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र मे पुरस्कृत
अन्य उपलब्धियाँ- स्वैच्छिक.. बेटी बचाओ.. बेटी पढाओ अभियान
लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः