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दुर से देखने से लगते हैं सुनहरे
पास पहुंचते-पहुंचते बड़ जाते हैं थोड़े।
ख्वाहिशों का कोई अंत नहीं
यह तो मन की फितरत है
सबकी अपनी-अपनी चाहत है
बिन मेहनत कहां सम्भव है
क्रिया पर यह निर्भर है
सबकी अपनी-अपनी ख्वाहिशें हैं
एक नहीं, हज़ार हैं
एक पूरी हुई नहीं कि
दुसरे के अरमान हैं
ज़िन्दगी है तो ख्वाहिशें हैं
ज़िंदा है इसका प्रमाण है।
#भारती विकास(प्रीति)
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