ऊपर बैठा एक मदारी, देखो खेल कैसे खिलाए,
हम बन्दर हम भालू रीछ, देख डमरू कैसे बजाए।
न मानें हम उनकी बातें,देख लाठी कैसे दिखलाए,
ऊपर बैठा एक मदारी,देख खेल कैसे खिलाए।।
खेल-खेल में सिखा दिया है
हँसते-हँसते रोना,
खेल-खेल में सिखा दिया है
रोते-रोते हँसना।
खेल भी उसका,नियम उसके
न मानें तो दंड दे जाए।
ऊपर बैठा एक मदारी,देख खेल कैसे खिलाए।।
विश्वास करो उसके खेल में,
देखो खुशियां कैसे भर आए…
गम भी जाए,दुःख भी जाए,
जीवन कैसे खुशहाल हो जाए..
ऊपर बैठा एक मदारी,देखो खेल कैसे खिलाए।।
#हिमांशु लोढ़ा
परिचय : २२ वर्षीय हिमांशु लोढ़ा,उदयपुर (राजस्थान)में पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं। साथ ही कविता, कहानियाँ एवं कटाक्ष व्यंग्य लिखने का प्रयास करते हैं।