भागती सी है ज़िन्दगी
जल्दी पाने की होड़ है,
अपना स्वार्थ है सर्वोपरि
रोंदते औरों की नीड़ है|
हर इंसान है थका-सा ,
फ़ुर्सत नहीं किसी के पास
बढ़ती इच्छाओं की आपूर्ति से
वह हो जाता हताश
वह ठगा-सा रह जाता है
जब इच्छाओं का होता दमन
जो हर हाल में रहे सन्तुष्ट
तभी चिंताओं का होगा शमन
कभी न रुकेगी यह चाहत
जिसकी करता वह तलाश
खोया-खोया उदास मन
भीड़ में अकेला और हताश
निज स्वतन्त्रता की ख़ातिर
रिश्तों से विलग हो गए
उलझी हुई है ज़िन्दगी
मन से मज़बूर हो गए।
उलझते ही चले गए
खुद के बुने हुए जाल में
मन है उलझन कैसे निकलें
इस माया के जंजाल से
निज़ात पाकर मृगतृष्णा से
ज़िन्दगी हो आसान|
इसलिए समय रहते ही
संभल जा ओ इंसान,
संभल जा ओ इंसान,
नाम- वैष्णो खत्री
साहित्यिक उपनाम-वैष्णो खत्री
वर्तमान पता- जबलपुर (मध्य प्रदेश)
शिक्षा- बी एड, एम ए-
(हिंदी साहित्य, समाज शास्त्र)
कार्यक्षेत्र- सेवा निवृत शिक्षिका केंद्रीय विद्यालय छिंदवाड़ा।
विधा – काव्य-गद्य सृजन, गीत, गज़ल आदि।
प्रकाशन- विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में रचनाएँ प्रकाशित।
एक काव्य संग्रह ‘अनछुई पंखुड़ियाँ’ प्रकाशित हो
चुका है।
एक और ‘काव्य संग्रह’ आत्म-ध्वनि प्रकाशित होने वाला है।
अन्य उपलब्धियाँ एवं सम्मान-
सम्मान-काव्य रंगोली साहित्य भूषण सम्मान 2018, सहभागिता सम्मान 2018,
राष्ट्रीय कवि चौपाल, रामेश्वर दयाल दुबे साहित्य
सम्मान 2019, राष्ट्रीय कवि चौपाल स्टार हिन्दी श्रेष्ठ सृजनकार सम्मान। मार्च 2019, अखिल भारतीय साहित्य परिषद् विराटनगर, साहित्य सम्राज्ञी सम्मान मार्च 2019
ब्लॉग-merirachnaayain.blogspot.com
लेखन का उद्देश्य-। मेरे द्वारा कृत रचनाओं से अनछुए पहलुओं को कलमबद्ध करके सामान्य पाठकों के बीच लाना और सामाजिक सम्वेदनाओं के मूल्यों को जगाना ही मेरा मुख्य उद्देश्य है।