दर्द मिटाए मधुशाला

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niraj tyagi
सुना  है   बहुत  मंद  उजाले   है   मधुशाला  में ,
शायद जुगनू भटकते है वहाँ दिन ढले पैमानों में,
शब्दो को यूँ  तो  हर कोई गुनगुनाता है अक्सर,
मतलब समझ आता है उनको जो खुद को डूबा
आया    मधुशाला    के    मय    के   प्यालो   में ,
मधुशाला में कहीं किसी को आईने की जरूरत नही है,
यहाँ  अगर  किसी  ने  कभी  खुद  को डुबाया मय में,
वो   खुद   ही   अपने   चेहरे   का   नकाब  हटाकर
सच्चाई    अपनी     दिखाने     लगा     मधुशाला    में,
हर जख्म जो कोई किसी का अपना भी नही समझता,
उस को भी अनजान शख्स पहचान लेता है मधुशालो में,
दिन में अक्सर जो जीवन से थककर हार मान गया है,
रात  को  मय  में  डूबकर  जीत  गया  है वो जमाने को,
कहीं भी किधर भी जाओ हर तरफ दर्द बढ़ता ही जाता है।
मधुशाला  में  जाने  पर  हर  दर्द  खुद  ही मिटता जाता है।।
नीरज त्यागी
ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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