अकेला चल

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चल अकेला चल अकेला
मत निराशा साथ ले।
बढ़ अकेला बढ़ अकेला
मत निराशा साथ ले।।
स्वप्न सी ही जिंदगी है
जी ले हर पल मस्ती से।
क्या पता कल हो या न हो
प्यार भरी इस बस्ती में।।
रिश्ते नाते की दीवारें
तोड़ ले मन जोड़ ले
बढ़ अकेला………..
मत निराशा साथ ले।।।1।।
……………………………….
तेरी उदासी तूँ न जाने
इस तरह से काज कर।
मंजिलो के बन मुसाफिर
जो भी करना आज कर।
है ललक बढ़ने की आंगे
तो मन में दृढ़तर ठान ले।
बढ़ अकेला……………
मत निराशा………….।।2।।
………………………………
भयभीत न हो मृत्यु से भी
उसको सखावत जान ले।
जिंदगी जो भी मिली है
जीने की उसमें ठान ले।
दे अभय और ले अभय
ये सूत्र जीवन का जान ले।
बढ़……………………..
मत ……………………।।3।।
      #शास्त्री दीपक जैन”ध्रुव”

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