वूमन आवाज़ (भाग २)

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niraja mehata
पुस्तक समीक्षा………
पुस्तक का नाम—वूमन आवाज़ (भाग २)
संपादक– श्रीमति शिखा जैन
प्रकाशक—संस्मय प्रकाशन, इंदौर, मध्य प्रदेश
पृष्ठ ७२
रचनाएँ ६५
विधा–गद्य एवं पद्य
       “ये आवाज़ है हर नारी की”
“ईश्वर का सर्वश्रेष्ठ सृजन, इस सृष्टि पर है नारी।
सर्वगुणी, सम्पन्न, सुसज्जित, प्रति नर पर वह भारी।।
(नीता त्रिपाठी ‘परिणीता’)
यथा नाम तथा गुण। जैसा कि पुस्तक के नाम से ही ज्ञात होता है कि इस पुस्तक में नारी शक्ति का, नारी सशक्तिकरण का मुखरित रूप संजोया है वैसे ही नारियों के गुणों को परिलक्षित करती ये पुस्तक अपने आप में एक अलग स्वरूप लिए हुए है।  पुस्तक में नारियों की वो आवाज़ है जो स्पष्ट करती है कि भले ही नारी कोमल, नर्म दिखती है किंतु उसका अंतःकरण बहुत मज़बूत है। ६५ लेखिकाओं/कवयित्रियों द्वारा अपनी गद्य एवं पद्य विधा से सजाई खूबसूरत रचनाओं की इस श्रृंखला को वूमन आवाज़ की संस्थापिका “श्रीमति शिखा जैन” जी ने पुस्तक का रूप दिया और संस्मय प्रकाशन द्वारा प्रकाशित “वूमन आवाज़” (भाग २) के रूप में सबके समक्ष लाईं।
“नारी की सृजन शक्ति अद्भुत।
हर पुरुष किसी नारी का सुत।”
(विनीता श्रीवास्तव)
“पल प्रतिपल देती रही परीक्षा
बिना परिणाम मिले आगे बढ़ती रही।”
(शालिनी खरे)
स्वयं से संवाद करती स्त्री, अपने लिए अपने द्वारा ही सृष्टि की रचयिता के रूप में, कभी खुलकर सामने आती, कभी मौन होकर बहुत कुछ कह जाती ऐसी स्वाभिमानी, सरल व चुनौतियों से जूझती और बुलंदियों को छूती नारी का वर्चस्व दिखाती इस पुस्तक की रचनाएँ अनमोल हैं, अप्रतिम हैं। सभी लेखिकाओं व कवयित्रियों ने सरल, सहज भाषा में अपनी बात पाठकों तक पहुँचाई है, अपनी आत्मा से परिचय कराया है और दिखाया है स्त्री का स्वरूप।
“मैं सिर्फ तन नहीं, मन भी हूँ
जिसमें बसते हैं ढेरों सपने…….
चाहती हूँ सम्मान हो इसका।
(डॉ अनीता राठौर मंजरी)
“सुनो!
ये जो सुखी जीवन जी रहे हो न
वो मेरे उत्तर न देने से,
अगर हर प्रश्न का जवाब देती
तो शायद अब तक तुम्हारे साथ न होती।”
(प्रतिभा श्रीवास्तव अंश)
प्रभु की बनाई इस अनुपम कृति नारी के विभिन्न रूपों को दृष्टिगोचर कराती इस पुस्तक में न सिर्फ उसको माँ, बहन या बेटी बनकर उभारा है अपितु दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती और सीता, सावित्री, पांचाली जैसे रूपों को भी दिखाया है। नारी कल क्या थी, आज क्या है और कल उसका क्या स्वरूप होगा ये बताते हुए भी उसमें वही समानता, वही सरलता, वही भावुकता का सम्मिश्रण किया है अर्थात नारी चाहे कितनी भी आधुनिक हो जाये उसके गुणों में परिवर्तन नहीं होता है। उसके अंतस में अब भी वही भावना बहती है, वही संवेदना जन्म लेती है।
“नारी हूँ नारी ही समझी जाऊँ
नारी हूँ नारी ही कहलाऊँ।”
(मीनाक्षी सुकुमारन)
“उम्र भर, जो खड़ी रही
इंतज़ार में किसी के
वो स्त्री ही तो थी।”
(सुकेशिनी दीक्षित)
ये सच है कि आज नारी ने अपना पथ प्रशस्त किया है, उसने कदम बढ़ाए हैं, आवाज़ उठाई है और विश्व को दिखा भी दिया है कि नारी शक्तिस्वरूपा है, गर्विता है, और तेजस्विता है। उसने नर के कंधे से कंधा मिलाया है फिर भी वो नारी बनी रहना चाहती है क्योंकि वही उसकी पहचान है। इस पुस्तक की रचनाओं में जो सर्वाधिक रूप परिलक्षित हुआ है वो यही प्रकट करता है कि समाज में नारी को अब भी वो सम्मान नहीं मिला जिसकी वो हक़दार है। रचनाओं में गहन भाव छुपे हैं, अंदर की पीड़ा उभर रही है और अपनी इसी वेदना को वो समाज के समक्ष लाना चाहती हैं।
“बन जाओ झाँसी की रानी
दुश्मन देख-देख थर्राय
आँख उठाये कोई भी जब
प्राणों के लाले पड़ जाय।”
(रागिनी स्वर्णकार शर्मा)
“करो प्रतिज्ञा नारी तुम, जग को प्रकाशित कर दोगी
ले मशाल हाथों में अपने, अंधकार सब हर लोगी।”
(कविता वाणी)
किसी ने नारी को उपेक्षित कहानी लिखा, किसी ने उसकी सिसकती आहें दिखाईं, किसी ने वसुधा से उसकी समानता करी तो किसी ने उसको झाँसी की रानी बनने के लिए भी कह दिया। इससे स्पष्ट दृष्टिगोचर है कि उपेक्षित नारी अपना स्वरूप बदलना चाहती है। वो माँ है, उसमें ममता है, वो बेटी है, उसमें दया है, वो बहू है, उसमें समर्पण है लेकिन ऐसा न हो कि सिर्फ नारी इसी में डूबी रहे, उसको जागने को कहा गया है। नारी के सक्षमीकरण की आवश्यकता है और यही बीड़ा उठाया है वूमन आवाज़ ने।
“सीने में रखती है ममता, आँखों में चिंगारी है
अबला नहीं सदा से सबला, ये भारत की नारी है।”
(भारती जैन दिव्यांशी)
“मैं बस सम्मान के दो शब्द चाहती हूँ।
मैं स्त्री हूँ, हाँ मैं ही प्रकृति हूँ।”
(नवनीता कटकवार)
विश्व की आधी आबादी के सृजन को पढ़कर, उनके भावों को आत्मसात कर और मनन करने के उपरांत उनकी सृजनशीलता को हृदय से नमन करती हूँ। वूमन आवाज़ संस्थान की संस्थापिका श्रीमति शिखा जैन जी को हार्दिक धन्यवाद देती हूँ कि उन्होंने सबकी रचनाओं को संकलित कर एक पुस्तक का रूप दिया और समाज के समक्ष नारियों के मन के भाव सामने लाईं। निश्चित ही नारी सशक्तिकरण में ये पुस्तक अहम स्थान रखेगी क्योंकि ये आवाज़ है हर नारी की।
अंत में मैं अपने शब्दों में कहना चाहूँगी—
“ये आहट है हर नारी की
उसकी पीढ़ियों की
हर देश में, हर घर में
अब गूँजेगी खनक चूड़ियों की।”
अनंत शुभकामनाओं सहित–
डॉ नीरजा मेहता ‘कमलिनी’
गाज़ियाबाद (उ.प्र.)

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