शिक्षित व् अशिक्षित : सभी का भविष्य नष्ट करती है बेरोज़गारी। 

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salil saroj
 भारतीय रिजर्व बैंक यानी आरबीआई के पूर्व गवर्नर और अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने भी बार बार कहा है कि कहा कि देश में नौकरियों की भारी किल्लत है और सरकार इस पर सही से ध्यान नहीं दे रही है। रघुराम राजन ने यह भी स्पष्ट किया है कि  जीएसटी और नोटबंदी से देश को नुकसान हुआ है।
रघुराम राजन कहते हैं कि आज भले ही आपके पास हाई स्कूल की डिग्री हो मगर आपको नौकरी नहीं मिलेगी. हमारे पास आईआईएम, आदि जैसे प्रमुख संस्थानों से पढ़ने वाले लोगों के लिए बहुत अच्छी नौकरियां हैं, मगर अधिकांश छात्र जो स्कूलों और कॉलेजों से पढ़कर निकलते हैं, उनके लिए स्थिति समान नहीं है, क्योंकि वे जिन स्कूलों और कॉलेजों से पढ़कर निकलते हैं वह उस स्तर का फेमस नहीं होता. उन्होनें यह भी जताया कि कर्ज माफी का फायदा गरीबों को नहीं मिलता और इससे देश के राजस्व पर संकट आता है।
लीक हुई NSSO की जॉब्स रिपोर्ट पर रघुराम राजन ने कहा है  कि युवाओं को नौकरियों की तलाश है. भारत में अच्छी नौकरियों की बड़ी किल्लत है. मगर अवसर नहीं हैं. बेरोजगारी पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है. लंबे समय से नौकरियों के आंकड़े बहुत खराब हैं. हमें इनमें सुधार करने की आवश्यकता है. ईपीएफओ या अन्य मेक-अप संस्करणों पर भरोसा नहीं कर सकते, बेहतर रोजगार डेटा एकत्र करने की आवश्यकता है. यह कहना समस्याजनक है कि लोग नौकरी नहीं चाहते हैं. कुछ आंदोलन इस तथ्य के रिफ्लेक्शन हैं कि युवा नौकरियों की तलाश में हैं, खासकर सरकारी नौकरियां क्योंकि सरकारी नौकरियों में सुरक्षा का भरोसा होता है.
सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआइ) की रिपोर्ट के अनुसार नौकरियों के लिहाज से कुछ दिन पहले बीता वर्ष 2018 अच्छा नहीं रहा. भारत में करीब 11 मिलियन (1.10 करोड़) लोगों ने नौकरियां गवां दी. हाल ही में जारी उसकी रिपोर्ट में विश्लेषकों ने बताया कि संगठित की जगह असंगठित क्षेत्र में नौकरियां गयीं. जिन्होंने नौकरियां गंवायीं. उनमें महिलाएं, अनपढ़, दिहाड़ी मजदूर, कृषि मजदूर और छोटे व्यापारी शामिल हैं.
नौकरियों के लिहाज से इस वर्ग को 2018 में सबसे अधिक नुकसान झेलना पड़ा. सीएमआइइ की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में बेरोजगारी स्थिर बनी हुई है और रोजगार की कमी लगातार बढ़ रही है. सीएमआइइ की रिपोर्ट में तथ्यों के हिसाब से बताया गया है कि दिसंबर 2018 में देश रोजगार का आंकड़ा 397 मिलियन था जबकि एक साल पहले दिसंबर 2017 में यह आंकड़ा 407.9 मिलियन था. इस लिहाज से देश में नौकरियों की संख्या में 10.9 मिलियन की कमी आयी है.
इस रिपोर्ट पर करीब से गौर करने पर पता चलता है कि शहरी और  ग्रामीणों इलाकों की तुलना में बेरोजगारी की मार ग्रामीण इलाकों में अधिक पड़ी है. अधिकतर नौकरियां कृषि आधारित इलाकों में गयी हैं. अनुमान के मुताबिक 90.10 लाख नौकरियां ग्रामीण इलाकों में गयी हैं, वहीं शहरी इलाकों में मात्र 10.80 लाख लोगों की नौकरियां छिनी हैं. भारत एक कृषि प्रधान देश है, यहां दो तिहाई जनसंख्या कृषि और कृषि आधारित व्यवसाय पर निर्भर है. लेकिन सीएमआइइ की रिपोर्ट के आंकड़े बता रहे हैं कि इन्हीं इलाकों में 84 प्रतिशत नौकरियां गयीं हैं.
2018 में नौकरियां छिनने का सबसे अधिक असर महिलाओं पर पड़ा. इस दौर में महिलाओं की नौकरियां सबसे अधिक छिनी हैं. आंकड़ों के मुताबिक  महिलाओं ने 80.80 लाख और पुरुषों ने 20.20 लाख नौकरियां गंवायी हैं. इसमें 60.50 लाख नौकरियां गंवाने वाली महिलाएं ग्रामीण इलाकों से आती हैं. वहीं शहरी इलाकों में मात्र 20.03 लाख महिलाएं ही नौकरी खोयी हैं. नौकरियां के जाने से पुरुषों पर अधिक असर नहीं पड़ा है. क्योंकि पुरुष स्थान बदल कर नौकरी या रोजगार कर सकते हैं, लेकिन महिलाओं के लिए यह संभव नहीं है. आंकड़ों के हिसाब से पांच लाख शहरी पुरुषों को नौकरियां मिली हैं. वहीं ग्रामीण इलाकों में 20.30 लाख पुरुषों ने नौकरियां गवां दी हैं.बढ़ती बेरोजगारी से देश की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ता है.
एक नजर आंकड़ों पर
-40-59 साल आयु वर्ग के लोग नौकरियां करते थे
-30.70 लाख कर्मचारियों की, जो सैलरी पाते थे, वर्ष 2018 में जॉब गयी
भारत में बेरोज़गारी प्रतिशतता :
ग्रामीण पुरुष    : 17.4%
ग्रामीण महिला  : 13.6%
शहरी पुरुष      : 18.7%
शहरी महिला    : 27.2%
भारत में बेरोजगारी की दर साल 2017-18 में 6.1 प्रतिशत रही, जो साल 1972 के बाद सबसे ज्यादा थी। साल 1971 में बेरोजगारी दर 6 प्रतिशत थी। ऐसे में बेरोजगारी के मामले में देश ने पिछले 45 सालों के रिकार्ड को तोड़ दिया। बिजनेस स्टैंडर्ड की खबर के मुताबिक इसका खुलासा नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) के लीक हुए डाटा से हुआ।
इन्फ़ोसिस के पू्र्व सीएफओ मोहनदास पाई कहते हैं कि ऑटोमेशन की वजह से हाई स्किल नौकरियों जैसे आर्किटेक्ट, उच्चस्तरीय कोडर को ख़तरा नहीं है. इसी तरह छोटे कामों जैसे रेस्टोरेंट और सलून में भी नौकरियां नहीं घटेंगी. ख़तरा इन दोनों के बीच वाली नौकरियों का है. जैसे बैंक, दूसरे सर्विस सेक्टर के दफ़्तरों और कारखानों में ऑटोमेशन तेज़ी से हो रहा है.
विश्व बैंक की 2016 की वर्ल्ड डेवेलपमेंट रिपोर्ट कहती है कि तकनीक की वजह से पूरी दुनिया में नौकरियां कम हो रही हैं. क्लर्क और मशीन ऑपरेटर जैसे कामों में मौक़े कम हो रहे हैं. वहीं हाई स्किल या लो स्किल नौकरियां बढ़ रही हैं.भारत जैसे विकासशील देश के लिए ये बड़ी चुनौती है.
विश्व बैंक की सीनियर अर्थशास्त्री इंदिरा संतोष कहती हैं कि भारत में मध्यम वर्ग की तरक़्क़ी से बड़ी आबादी ग़रीबी रेखा से ऊपर उठ सकी. अब इसकी नौकरियों पर ख़तरे की वजह से ग़रीबी बढ़ने का डर है. इससे समाज में उठापटक मचने का डर है.
इंदिरा संतोष कहती हैं कि इसकी वजह सिर्फ़ ऑटोमेशन नहीं. ग्लोबलाइज़ेशन और शहरीकरण से भी ऐसा हो रहा है. लेकिन मध्यम वर्ग के लिए नौकरियों के कम होते अवसर से भारत जैसे देश की अर्थव्यवस्था को ज़्यादा ख़तरा है.
कंपनियों के लिए ऑटोमेशन करना मजबूरी है. उन्हें दूसरी कंपनियों से मुक़ाबले में आगे रहना है. अपना मुनाफ़ा बनाए रखना है और दुनिया की बड़ी कंपनियों से होड़ लगानी है. सीमेंस इंडिया के सुनील माथुर कहते हैं कि मशीनों से काम करना से आपको सस्ते आयात से मुक़ाबला करने में सहूलत होती है. आपका निर्यात बढ़ता है. घरेलू मांग बढ़ती है.
वेयरहाउस कंपनी चलाने वाले समय कोहली, सुनील माथुर से सहमत हैं. वो कहते हैं कि भारत दुनिया के बाक़ी देशों से उत्पादकता के मामले में काफ़ी पीछे है. दूसरे देशों में कंपनिया जो काम 100 रुपए में कर लेती हैं, भारत में उसके लिए 125-150 रुपए ख़र्च होते हैं.
रोजगार के तिमाही आंकड़ों की दो रिपोर्ट अभी तक लंबित हैं। 2016-17 की रिपोर्ट 18 महीनों से जारी नहीं की गई है। इससे पहले 2015-16 की रिपोर्ट सितंबर 2016 में प्रकाशित की गई थी। हांलाकि 2014-15 में भी कोई रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की गई। विशेषज्ञों का कहना है कि देश में बेरोजगारी बढ़ी है। बताया जा रहा है कि लोकसभा चुनाव- 2019 को देखते हुए केंद्र सरकार इन आंकड़ों को जारी करने से बच रही है। दोस्तों, इस समय शिक्षित युवाओं के सामने सबसे बड़ा संकट रोजगार का ही है। देश की कुल बेरोजगारी दर के मुकाबले ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट और उससे ऊपर की शिक्षा पाए लोगों की बेरोजगारों की दर छह गुना ज्यादा है।
शिक्षित बेरोज़गार स्वयं और समाज के लिए एक प्रश्न की तरह है जिसका जवाब बहुत जल्द नहीं ढूँढा गया तो उसे असामाजिक होते ज्यादा वक़्त नहीं लगेगा। और अकुशल कार्मिक से कार्य की संतुष्टि की अपेक्षा नहीं की जा सकती। जो युवा कुशल है  और जिन्हें नौकरी करने की ललक है, उनके रोज़गार से बाहर रखना किसी भी प्रगतिशील राष्ट्र के लिए खतरे की निशानी और चुनौती से भरा है।  अतः सरकारों को राज्य एवं केंद्र स्तर पर बेरोज़गारी को बहुत ही गंभीरता से लेना चाहिए एवं जो भी व्यक्ति और संस्था युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ करती  है , उनके खिलाफ सख़्त कार्यवाही की जानी चाहिए।
#सलिल सरोज
परिचय : सलिल सरोज जन्म: 3 मार्च,1987,बेगूसराय जिले के नौलागढ़ गाँव में(बिहार)। शिक्षा: आरंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल, तिलैया, कोडरमा,झारखंड से। जी.डी. कॉलेज,बेगूसराय, बिहार (इग्नू)से अंग्रेजी में बी.ए(2007),जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए(2011), जीजस एन्ड मेरी कॉलेज,चाणक्यपुरी(इग्नू)से समाजशास्त्र में एम.ए(2015)। प्रयास: Remember Complete Dictionary का सह-अनुवादन,Splendid World Infermatica Study का सह-सम्पादन, स्थानीय पत्रिका”कोशिश” का संपादन एवं प्रकाशन, “मित्र-मधुर”पत्रिका में कविताओं का चुनाव। सम्प्रति: सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार एवं ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र। सोशल मीडिया पर साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने की अनवरत कोशिश।पंजाब केसरी ई अखबार ,वेब दुनिया ई अखबार, नवभारत टाइम्स ब्लॉग्स, दैनिक भास्कर ब्लॉग्स,दैनिक जागरण ब्लॉग्स, जय विजय पत्रिका, हिंदुस्तान पटनानामा,सरिता पत्रिका,अमर उजाला काव्य डेस्क समेत 30 से अधिक पत्रिकाओं व अखबारों में मेरी रचनाओं का निरंतर प्रकाशन। भोपाल स्थित आरुषि फॉउंडेशन के द्वारा अखिल भारतीय काव्य लेखन में गुलज़ार द्वारा चयनित प्रथम 20 में स्थान। कार्यालय की वार्षिक हिंदी पत्रिका में रचनाएँ प्रकाशित।

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