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भोर की गहराइयों से
फैलती है रोशनी,
मौन से कुछ पल खड़े हैं
भीगती अब ओस भी।
धुंध-सी कुछ छँट रही है
व्योम कुछ ज़ाहिर हुआ,
दूर से आतीं हैं किरणें
कुल समाँ रोशन हुआ।
स्वर्ण-सा आभास जग को
सूर्य की आभा कराती,
चीरती जाती तिमिर को
हर दिशा ओजस कराती।
नींद से है अब जग रही
प्रकृति प्रफुल्लित हो उठी,
चल पड़ीं पुरवाइयाँ
चेतना प्रस्फुटित हो उठी।
एक कोहरे से है देखो
झाँकता यह ताज यूँ,
सदियों से हर सुबह जैसे
बोलता कुछ राज ज्यूँ।
कितने ही हैं दफ्न किस्से
कितनी हैं कहानियां,
कितने युग कहता रहा ये
मौन की रानाइयाँ।
कहीं छिपा लगता है जैसे
कुदरत का इशारा कोई,
रोज दिखता है नवल
करिश्मा-सा नजा़रा कोई…॥
#प्रियंका बाजपेयी
परिचय : बतौर लेखक श्रीमती प्रियंका बाजपेयी साहित्य जगत में काफी समय से सक्रिय हैं। वाराणसी (उ.प्र.) में 1974 में जन्मी हैं और आप इंदौर में ही निवासरत हैं। इंजीनियर की शिक्षा हासिल करके आप पारिवारिक कपड़ों के व्यापार (इंदौर ) में सहयोगी होने के साथ ही लेखन क्षेत्र में लयबद्ध और वर्ण पिरामिड कविताओं के जानी जाती हैं। हाइकू कविताएं, छंदबद्ध कविताएं,छंद मुक्त कविताएं लिखने के साथ ही कुछ लघु कहानियां एवं नाट्य रूपांतरण भी आपके नाम हैं। साहित्यिक पत्रिका एवं ब्लॉग में आपकी रचनाएं प्रकाशित होती हैं तो, संकलन ‘यादों का मानसरोवर’ एवं हाइकू संग्रह ‘मन के मोती’ की प्रकाशन प्रक्रिया जारी है। लेखनी से आपको राष्ट्रीय पुष्पेन्द्र कविता अलंकरण-2016 और अमृत सम्मान भी प्राप्त हुआ है।
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Thu Jan 25 , 2018
मेरा लोकतंत्र,न्यायपालिका खतरे में है, बीस वर्ष तक न्याय न मिलना खतरे में हैl न राम-न रहीम अब मुझमें पलता है, मेरे हर राज्य में हिन्दू-मुस्लिम बंटता हैl दलित,ब्राम्हण के नाम पे मुझे बांट रहे हैं, मैं हिंदुस्तान हूँ,मुझे ये लोग काट रहे हैंl एक ही चाँद […]