बारुद की गंध

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kusum joshi
गर्म हवा के थपेड़े पूरे शहर को झुलसा रहे थे,कहीं कहीं बिखरे बचे खुचे पेड़ निस्तेज पड़े थे , शहर के बीचों बीच बह रही नदी उदासी में लिपटी रेंग रही है , मानों नदी के आंसू सिमट आयें हों ,  दूर दूर  छितराये हुये पेड़ो से आती सदायें सुनने की कोशिश कर रही हो,वो पेड़ की जड़ों को छूकर आना चाहती थी,पर दोनों छोरो में बड़ता उसका कछार उसे पेड़ तक पहुंचने नही दे रहा था।
      मीलों फैला क्रंकीट का जंगल उसमें रहने वाले बाशिन्दों के साथ भविष्य के प्रति आँखें मूंदे अपनी खुशफहमी के कोलाहल में डूबा था ,
    पेड़ गर्म हवा के झोंके के साथ नदी की और झुकता सा लहराया पर उसके हिस्से में आयी दर्द भरी सिसकी , तभी कुछ थकी मांदी गौरय्या पेड़ में आ बैठी , पेड़ को खुशी महसूस हुई कि वो अभी भी दूसरों को छाया देने के काबिल है,
      थकी मांदी कमजोर सी गौरय्या ने चहक कर पेड़ का शुक्रिया अदा किया,पेड़ के सूखे पत्ते खड़खड़ाये माने अपने प्यासे होने का इशारा कर रहे हैं..मरती नदी ने प्यासे पेड़ को देखा.. और उदास नजरों से आकाश को ताका…दूर दूर तक कोई बादल नही था , अपनी मजबूरी में सिसक उठा ..   तभी तेज धमाके की आवाज से मासूम चिड़िया घबरा उठी, अनायास उसकी नजर कंक्रीट के बाशिंदों में पड़ी,जहां लोग पानी को लेकर अराजक हो गये थे, उसका नन्हा सा दिल भविष्य की सोच कर कांप उठा..अब धीरे धीरे हवा में बारुद की गंध फैलने लगी थी।
#डा. कुसुम जोशी
          गाजियाबाद(उत्तर प्रदेश)

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