वक्त-ए-आखिर…
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वक्त-ए-आखिर तुझमें मुझमें फर्क क्या रह जाएगा,
ना रहेगा कोई छोटा, ना बड़ा रह जाएगा,
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काम आएँगी वहां बस अपनी-अपनी नेकियां,
मान-इज़्ज़त महल-दौलत सब पड़ा रह जाएगा,
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सीख लूँ खुदगर्ज़ियाँ मैं भी ज़माने से मगर,
इंसानियत से फिर क्या मेरा वास्ता रह जाएगा,
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फर्क ही इतना बड़ा है तेरे मेरे दरमियाँ,
लाख कोशिश कर लूँ फिर भी फासला रह जाएगा,
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हम चले जाएँगे फिर ना होंगी ऐसी रौनकें,
दरबार चाहे आपका यूँ ही सजा रह जाएगा,
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गज़ल कहते उम्र सारी बीती पर लगता है यूँ,
कुछ तो है दिल में मेरे जो अनकहा रह जाएगा,
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#भरत मल्होत्रा
परिचय :–नाम- भरत मल्होत्रामुंबई(महाराष्ट्र)शैक्षणिक योग्यता – स्नातकवर्तमान व्यवसाय – व्यवसायीसाहित्यिक उपलब्धियां – देश व विदेश(कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों , व पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशितसम्मान – ग्वालियर साहित्य कला परिषद् द्वारा “दीपशिखा सम्मान”, “शब्द कलश सम्मान”, “काव्य साहित्य सरताज”, “संपादक शिरोमणि”झांसी से प्रकाशित “जय विजय” पत्रिका द्वारा ” उत्कृष्ट साहितय सेवा रचनाकार” सम्मान एवदिल्ली के भाषा सहोदरी द्वारा सम्मानित, दिल्ली के कवि हम-तुम टीम द्वारा ” शब्द अनुराग सम्मान” व ” शब्द गंगा सम्मान” द्वारा सम्मानितप्रकाशित पुस्तकें- सहोदरी सोपानदीपशिखाशब्दकलशशब्द अनुरागशब्द गंगा
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