हम क्यों रोज़ रोज़ ख़ुदा ढूंढे,
जिसको न मिले हो वही ढूंढे।
मेरे मात पिता ही ,मेरे खुदा है /
फिर क्यों मंदिर मज़ीद में ढूंढे //
रात आयी है, सुबह भी होगी,
आधी रात में कौन सुबह ढूंढे।
जीवन में दुःख है तो सुख भी है,
क्यों दुःख में रोकर सुख को खोये / /
ज़िंदगी है जी खोल कर जियो,
रोज़ रोज़ क्यों जीने की वजह ढूंढ़े।
जिंदगी का यदि लक्ष्य सही है तो,
जिंदगी को जीने का मज़ा ही और है //
चलते फिरते पत्थरों के शहर में,
पत्थर खुद पत्थरों में भगवान ढूंढ़े।
यदि खुद पत्थर दिल इंसान हो ,
तो क्यों रहीम दिल इंसान ढूढ़ते हो / /
यदि धरती को जन्नत, बनाना है अगर,
तो खुद को पहले, इंसान बनना पड़ेगा /
दिलो में इंसानियत को जगाना पड़ेगा ,
तभी धरती पर जन्नत, जैसा वातावरण बनेगा /
और इंसान एक दूसरे से प्यार करेगा //
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।