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हवाएं जो बदली कि नाविक किधर गए।
जो बहके थे कल मदमस्त आज
पिघल गए।
मुख मोड़ा था कल हमारी बेकशी पर,
जुबां थी उनकी कहते हैं फिसल गए।
अकेले हैं गुमसुम साथी अब बदल गए,
समय जो पलटा दरबारी टहल गए।
नक्कार खाने में तूती कोई सुनता नही
वक्त की मार से शहंशाह भी दहल
गए।
हुनर मन्द कुछ चिपकू अब उनसे चिपक गए।
जयकारों की बाढ़ आई और मुद्दे फिर बह गए।
तू लड़ हालातों से #अवि कि जूझना तेरा मुकद्दर रहा।
बाज़ार में देखो आज खोटे सिक्के
#अविनाश तिवारीजांजगीर चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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