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हर तरफ रंग के निशान थे,
मुझे कोई रंग नहीं भाया।
कोरी कागज-सी खिड़की पर बैठी रही,
क्योंकि वो नहीं आया।।
गाँव गलियां रंगीं सारी सखियाँ रंगीं,
मैंने आँसू से पलकों को बस रंगा।
तुझको क्या है खबर ऐ मेरे हमसफर,
सबकुछ देकर भी हमने कुछ नहीं पाया।।
जब पूछा किसी ने न आने का सबब,
हर दफा की तरह हम मुस्कुरा दिए।
कुछ तो मजबूरियां रही होगीं जो,
आने बाला इस बार भी अमित नहीं आया।।
#अमित शुक्ला
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ye haiku nahi hain