ज़माने से हुई ख़बर कि मैं सुधर गया

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salil saroj
ज़माने से हुई ख़बर कि मैं सुधर गया
फिर वो कौन था जो मेरे अंदर मर गया
दूसरों की निगाहों से जो देखा खुद को आज
देख कर अपना ही चेहरा क्यों डर गया
वो अल्हड़पन,वो लड़कपन कल तक जो था
आज ढूँढा बहुत,ना जाने किधर गया
मैं खोजता रहा खुद को स्टेशन की तरह
संसार रेल की तरह मुझसे गुज़र गया
मैं खोजता रहा जहाँ की तयशुदा मंज़िलें
मीलों चलके भी खाली मेरा सफर गया
कौन पहचानेगा मुझे बदले हालातों में
अपने भी ठुकरा देंगे,मैं घर अगर गया
जो दोस्त बनके नसीहतें देता रहा ताउम्र
ज्योंहि जरूरत पड़ी तो वो मुकर गया
मुझे बदलना था उसे,सो मुझे बदल गया
आदमी को मशीन बनाने का काम कर गया
#सलिल सरोज
परिचय : सलिल सरोज जन्म: 3 मार्च,1987,बेगूसराय जिले के नौलागढ़ गाँव में(बिहार)। शिक्षा: आरंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल, तिलैया, कोडरमा,झारखंड से। जी.डी. कॉलेज,बेगूसराय, बिहार (इग्नू)से अंग्रेजी में बी.ए(2007),जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए(2011), जीजस एन्ड मेरी कॉलेज,चाणक्यपुरी(इग्नू)से समाजशास्त्र में एम.ए(2015)। प्रयास: Remember Complete Dictionary का सह-अनुवादन,Splendid World Infermatica Study का सह-सम्पादन, स्थानीय पत्रिका”कोशिश” का संपादन एवं प्रकाशन, “मित्र-मधुर”पत्रिका में कविताओं का चुनाव। सम्प्रति: सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार एवं ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र। सोशल मीडिया पर साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने की अनवरत कोशिश।पंजाब केसरी ई अखबार ,वेब दुनिया ई अखबार, नवभारत टाइम्स ब्लॉग्स, दैनिक भास्कर ब्लॉग्स,दैनिक जागरण ब्लॉग्स, जय विजय पत्रिका, हिंदुस्तान पटनानामा,सरिता पत्रिका,अमर उजाला काव्य डेस्क समेत 30 से अधिक पत्रिकाओं व अखबारों में मेरी रचनाओं का निरंतर प्रकाशन। भोपाल स्थित आरुषि फॉउंडेशन के द्वारा अखिल भारतीय काव्य लेखन में गुलज़ार द्वारा चयनित प्रथम 20 में स्थान। कार्यालय की वार्षिक हिंदी पत्रिका में रचनाएँ प्रकाशित।

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