भारत में हिंदी को राजभाषा बनाने की दिशा में यह पहला कदम है

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49जो हिन्दुस्तान से..

आज मैं इटावा में हूं। उत्तरप्रदेश के इस शहर से मुझे बहुत प्रेम है, क्योंकि यही वह शहर है, जिसके दो स्वतंत्रता सेनानियों ने आज से
50-52 साल पहले मेरी बहुत जमकर मदद की थी। वे थे स्वर्गीय कमांडर अर्जुनसिंह जी भदौरिया और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सरलाजी भदौरिया। ये दोनों उस समय सांसद थे। जब अंतरराष्ट्रीय राजनीति का पी.एचडी. का शोधग्रंथ हिंदी में लिखने की मांग करने के कारण मुझे स्कूल आॅफ इंटरनेशनल स्टडीज से निकाल दिया गया था तो संसद में जबर्दस्त हंगामा हुआ। उस समय डाॅ. लोहिया, आचार्य कृपलानी, अटलबिहारी वाजपेयी, दीन दयालजी उपाध्याय, डाॅ. जाकिर हुसैन, हीरेन मुखर्जी, राजनारायणजी, भागवत झा आजाद, प्रकाशवीर शास्त्री आदि ने मेरा जमकर समर्थन किया लेकिन भदौरिया-दम्पती ने मुझे अपने घर, 216 नार्थ एवेन्यू में शरण दी। उन्होंने मुझे अपनी संतान से भी अधिक प्रेम और सम्मान दिया। उन्होंने प्रधानमंत्री चंद्रशेखरजी, मुलायमसिंहजी और मुझे इटावा बुलाकर सम्मानित किया था।

आज सुबह मैं ग्राम लोहिया गया और माताजी और कमांडर साहब की समाधि पर पुष्प अर्पण किए। मेरी आंखों में आंसू भरे थे। इटावा मैं आया हूं, हिंदी सेवा निधि के वार्षिक कार्यक्रम में। इस निधि की स्थापना न्यायमूर्ति श्री प्रेमशंकर गुप्त ने 26 साल पहले की थी। वे इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जज थे। वे ऐसे जज थे, जो अपने फैसले हिंदी में करते थे। हिंदी के प्रति उनकी अगाध निष्ठा का प्रमाण यह है कि उनके दो पुत्र- प्रदीपजी और दिलीपजी– भी वकील के तौर पर अपनी बहस हिंदी में करते है। निधि के समारोहों में अक्सर कई राज्यपाल, कई मुख्य न्यायाधीश, कई मुख्यमंत्री, कई विद्वान, कई साहित्यकार आते रहते हैं।

इस बार भी मंच ऐसे ही लोगों से सुशोभित हुआ है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक सेवा-निवृत्त जज सुधीर अग्रवाल मेरे पास बैठे थे। इन्होंने अयोध्या के राम मंदिर पर भी फैसला दिया था। उन्होंने मेरे एक सुझाव को न्यायिक जामा पहनाया था। सारे मंत्रियों, सांसदों, विधायकों और सरकारी कर्मचारियों और उनके परिजन की शिक्षा और चिकित्सा सरकारी पाठशालाओं और सरकारी अस्पतालों में ही हो, ऐसा एतिहासिक फैसला सुधीरजी ने दिया था।

आज मैंने उप्र विधान सभा के अध्यक्ष पं. हृदयनारायणजी दीक्षित और उप्र के मुख्य न्यायाधीश श्री गोविंद माथुर से निवेदन किया कि वे इस फैसले को लागू करवाएं। हिंदी सेवा निधि के इस भव्य कार्यक्रम में उपस्थित सैकड़ों भद्रलोकीय लोगों से मैंने आग्रह किया कि वे अपने हस्ताक्षर अंग्रेजी में करना बंद करें। लगभग सभी श्रोताओं ने हाथ उठाकर संकल्प किया कि वे अब अपने हस्ताक्षर हिंदी में ही करेंगे। भारत में हिंदी को राजभाषा बनाने की दिशा में यह पहला कदम है। वरिष्ठ विद्वानों ने मुझसे आग्रह किया कि देश में हिंदी आंदोलन चलाने का यह सही समय है। यदि 2019 के लोकसभा चुनाव में यह बड़ा मुद्दा बन जाए तो हम लोग अंग्रेजी को राजभाषा के पद से निकाल बाहर कर सकते हैं।

वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई

#डॉ. वेदप्रताप वैदिक

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।