चिड़िया का शहर यह छूट गया

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rajbala

अम्मा अब न चावल चुनती,
न बड़ियों को धूप दिखाती।

बर्गर-पिज्जा मांगे मुन्ना,
मुनिया भी न खीले खाती।

आंगन चिड़िया का छूट गया,
क्यों भाग्य विधाता रुठ गया ?

सूने सारे दालान पड़े,
खाली सारे खलियान पड़े।

खेतों से उठकर के बोरे,
जब गोदामों की ओर बढ़े।

दाना चिड़िया का छूट गया,
क्यों भाग्य विधाता रुठ गया ?

बेमतलब जल को बहा-बहा,
धरती को प्यासा छोड़ा है।

सब ताल-तलैया सूख गए,
मुख नदियों ने भी मोड़ा है।

चिङिया का नहाना छूट गया,
क्यों भाग्य विधाता रुठ गया ?

बिखरे कुनबे घर टूट गए,
अपने अपनों से रुठ गए।

आम नहीं,अब नीम नहीं,
हरे पेड़ सब ठूंठ भए ।

चिड़िया का चहकना छूट गया,
क्यों भाग्य विधाता रुठ गया ?

उड़ रही वास सड़ता कचरा,
चंहु ओर प्रदूषण है पसरा।

काला-सा धुआं चिमनियों का,
जब नभमंडल में जा बिखरा।

चिड़िया का उड़ना छूट गया।
क्यों भाग्य विधाता रुठ गया ?

कौड़ी -कौड़ी इंसान बिका,
सच्चाई हर पग छली गई ।

सब ओर बवाल मचा हुआ,
साजिश पे साजिश रची गई।

चिड़िया का शहर यह छूट गया।
क्यों भाग्य विधाता रुठ गया ?

                                                                           #राजबाला ‘धैर्य’

परिचय : राजबाला ‘धैर्य’ पिता रामसिंह आजाद का निवास उत्तर प्रदेश के बरेली में है। 1976 में जन्म के बाद आपने एमए,बीएड सहित बीटीसी और नेट की शिक्षा हासिल की है। आपकी लेखन विधाओं में गीत,गजल,कहानी,मुक्तक आदि हैं। आप विशेष रुप से बाल साहित्य रचती हैं। प्रकाशित कृतियां -‘हे केदार ! सब बेजार, प्रकृति की गाथा’ आपकी हैं तो प्रधान सम्पादक के रुप में बाल पत्रिका से जुड़ी हुई हैं।आप शिक्षक के तौर पर बरेली की गंगानगर कालोनी (उ.प्र.) में कार्यरत हैं।

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