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प्रेम क्या है, मरज है या है ये दवा
जलता दीपक है ये या है चलती हवा
प्रेम पाषाण है फिर ये खुश्बू है क्यूं
गर ये वाचाल है मौन में क्यों झरा
प्रेम मिल जाये तो ये है मारक दवा
न मिले तो मरज है न जिसकी दवा
जो हैं पत्थर हृदय उनको पाषाण है
जितना रोकेगी दुनिया ये उतना बढ़ा
#दिवाकर
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