रंग-बिरंगे फूलों की मुस्कुराहट की गठरी बाँधकर..
फागुन आ धमका,
पीला सिन्दूर,लाल महावर,लाल-हरी चूड़ी,
जो चला गया था उसे
अलसाया हुआ छोड़कर..
भारत माँ की धानी चुनर को बेरंग होने से बचाने को,
दे गया था उसे दिलासा का चुंबन..
और सुना गया था जल्दी वापस आने का दर्द भरा गीत।
मना ली थी उसने अकेले ही रंगीन होली रक्त से..
जला दी उस जोगन के रंगीन सपनों की होलिका,
तीन रंगों के कफ़न में लिपटी देह संग,
ले गया साथ लाल चूड़ियों की खनक..
छीन ले गया उसकी कोख हरी होने का स्वप्न,
कर गया रंगीन खुशियों में काले रंग की त्यौहारी पुताई..
और
छोड़ गया उसके पूरे जीवनभर के लिए होली मनाने को,
सिर्फ वो सफेद रंगll
परिचय : १९८९ में जन्मी गुंजन गुप्ता ने कम समय में ही अच्छी लेखनी कायम की है। आप प्रतापगढ़ (उ.प्र) की निवासी हैं। आपकी शिक्षा एमए द्वय (हिन्दी,समाजशास्त्र), बीएड और यूजीसी ‘नेट’ हिन्दी त्रय है। प्रकाशित साहित्य में साझा काव्य संग्रह-जीवन्त हस्ताक्षर,काव्य अमृत, कवियों की मधुशाला है। कई पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती हैं। आपके प्रकाशाधीन साहित्य में समवेत संकलन-नारी काव्य सागर,भारत के श्रेष्ठ कवि-कवियित्रियां और बूँद-बूँद रक्त हैं। समवेत कहानी संग्रह-मधुबन भी आपके खाते में है तो,अमृत सम्मान एवं साहित्य सोम सम्मान भी आपको मिला है।
आपकी लेखनी लाजवाब है गुंजन गुप्ता जी । बहुत बहुत बधाई
अद्भुत सुन्दर,,,, हृदयस्पर्शी रचना!!!