चंद्रघण्टा ( माँ का तीसरा रूप) 

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माता का तीसरा स्वरूप चंद्रघंटा का है । चंद्रघंटा का अर्थ है चंद्रमा घंटा के रूप में जिसके मस्तक  पर शोभित है । “चंद्र: घंटायां यस्या: सा चंद्रघंटा ।”
 इस रूप के प्रतीक के रूप में माँ के  रूप 10 हाथ दिखए गए हैं ; जो कि  5 कर्मेन्द्रिय और 5 ज्ञानेंद्रिय के प्रतीक हैं । चंद्रमा सौम्य और सुंदरता का प्रतीक है ,और वायु  तत्त्व का भी ।  इसलिए देखा जाता है कि कल्पनाशील व्यक्ति वायु प्रधान होते हैं और चंद्रमा की ओर ज्यादा आकृष्ट होते हैं ।
माता के इस रूप की पूजा के दिन साधक का ध्यान मणिपुर चक्र पर होता है ,जो नाभि पर होता है ।
साधना की दृष्टि से माना जाता है कि चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं, दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है तथा विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियाँ सुनाई देती हैं। अतः, ये क्षण साधक के लिए अत्यंत सावधान रहने के होते हैं।
इनका मन्त्र है :
पिण्डजप्रवरारुढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता | प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता ||
इस रूप में माँ शेर की सवारी करती हैं;  जो  अंदर की शक्ति है, जिस पर आरूढ़ रहना है।
#कमलेश कमल

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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