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पत्तों के खड़खड़ाने का शोर
चिड़ियों के चहचहाने की गूंज
बाग़ में तितलियों का उड़ना
पत्तों पर ओस का गिरना
कुछ नहीं बदला पर तुम नहीं हो
कुएं में पानी का स्तर
मुँडेर पर गिलहरी की किट पिट
मंदिर की आरती का स्वर
मस्जिद की भोर की अज़ान
कुछ नहीं बदला पर तुम नहीं हो
आम की मिठास, लीची का पकना
नारियल का लगना, जामुन का झड़ना
बालकों का बाग़ में अटखेलियां करना
गिरना और नाचना दौड़ना
कुछ नहीं बदला पर तुम नहीं हो
बछड़े का माँ से चिपकना
गैया का करुणा से निहारना
बच्चों का ज़िन्दगी से लड़ना
माँ की याद में सिसकियाँ भरना
कुछ नहीं बदला पर तुम नहीं हो
या शायद तुम हो माँ, पर दिखती नहीं.
#नम्रता
परिचय- नम्रता, बिहार के एक छोटे से शहर, मोतिहारी (जिला-पूर्वी चम्पारण जो ऐतिहासिक तौर पर चम्पारण सत्याग्रह १९१७ के लिए जाना जाता है) में जन्मी और पली-बढ़ी, मेरी उच्च माध्यमिक शिक्षा जवाहर नवोदय विद्यालय, पूर्णियां से हुई है I साहित्य पढ़ने और लिखने में रूचि रखती हूँ I लघु कविता पाठन विद्यालय और कॉलेज स्तर पर किया है I कॉलेज से प्रकाशित वार्षिक पत्रिका का संपादन भी किया है I वर्तमान में सॉफ्टवेयर अभियंता बतौर बेंगलुरु में कार्यरत हूँ I मौका मिलने पर सहकर्मियों को हिंदी की जानकारी देती रहती हूँ I ‘कमल की कलम’ द्वारा चयनित 73 कविताओं में मेरी भी एक कविता ‘लौट आओ माँ’ रही।
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Tue Oct 9 , 2018
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