सब कहते शीतल , मनोरम है चांद,
खूबसूरत इसे जग कहे पर यह शांत।
तिमिर में करता है यह सदा उजाला,
इसलिए तो बेदाग कहलाया है चांद।
जब होती है रोजाना प्यारी-सी सांझ,
मन को लुभाता ढ़लती सांझ में चांद।
इसकी महिमा है,बड़ी ही निराली,
व्रत तोड़ती है महिलाएं देखकर चांद।
पूर्णिमा की रात में सौन्दर्य बिखेरे चांद,
संग लेकर टिमटिमाते तारों की जमात।
सीखें इससे शांत-सौम्य-निर्मल रहना,
मन के तिमिर को दूर हटाएं जैसे चांद।
#गोपाल कौशल
परिचय : गोपाल कौशल नागदा जिला धार (मध्यप्रदेश) में रहते हैं और रोज एक नई कविता लिखने की आदत बना रखी है।