# नौशाद वारसीसमस्तीपुर , बिहार
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जिसे न पढ़ना आता है,
न पढ़ाना आता है,
वही शिक्षक बिहार का कहलाता है
होता है समय विद्यालय के खुलने का
वो घर पर सोया पाया जाता है
सरकारी नियमों को ताक में रख
मनमानी करने लगता है
बिना अवकाश स्वीकृति के
घर में पाया जाता है
यहाँ सब मैनेज हो जाता है
निरीक्षणकर्ता सरकारी अफसर हरे नोट में बिक जाता है
पोषाहार के कारण विद्यालय में विद्यार्थियों का मन बहल जाता है
समय असमय घंटी बजती है
टीचर की तब नींद लगती है
दक्षता परीक्षा में जब बार बार फेल हो जाता है
सच मानो यारों दिल ही टूट जाता है
मूल्यांकन में रिजल्ट जब बेकार आता है
सच है शर्म से तब सर झुक जाता है
असफल होने पर भी सरकार की महिमा से
शिक्षक बनना आसान होता है।
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