अब तो आज़ादी को भी नई आज़ादी चाहिए

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salil saroj
इन खुली फ़िज़ाओं में जो आज़ाद लहर बहती है
वो चीख़-चीख कर हर एक से बस यही कहती है
घर-बार, दौलत-शोहरत सब तो तुम्हें दे दिया है
बस मेरी जगह ही तुम्हारे दिल क्यों नहीं रहती है
जिन हाथों को सौपा था अपनी जिम्मेदारियों को
वो हाथ आज तलक भी आज़ादी को तरसती है
हर स्वंतन्त्रता दिवस और गणतन्त्र  दिवस पर
कुछेक के दरवाज़े से बंधी आज़ादी बिलखती है
अब तो आज़ादी को भी नई आज़ादी चाहिए
साल दर साल किसी चिंगारी सी सुलगती है
#सलिल सरोज

परिचय

नई दिल्ली
शिक्षा: आरंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल, तिलैया, कोडरमा,झारखंड से। जी.डी. कॉलेज,बेगूसराय, बिहार (इग्नू)से अंग्रेजी में बी.ए(2007),जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए(2011),  जीजस एन्ड मेरीकॉलेज,चाणक्यपुरी(इग्नू)से समाजशास्त्र में एम.ए(2015)।

प्रयास: Remember Complete Dictionary का सह-अनुवादन,Splendid World Infermatica Study का सह-सम्पादन, स्थानीय पत्रिका”कोशिश” का संपादन एवं प्रकाशन, “मित्र-मधुर”पत्रिका में कविताओं का चुनाव।सम्प्रति: सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार एवं ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र। सोशल मीडिया पर साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने की अनवरत कोशिश।

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