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कितना सूना है दिल का मेरे आसमाँ,
चाँद मेरा न जाने कहाँ खो गया।
टूटे तारें मैं ऐसी ही माँगू दुआ,
टूटे तारें तो तेरी ही माँगू दुआ,
तेरी यादों में खोया रहा इस तरह,
रात थी जाने कब फिर ये दिन हो गया।
तू ही राहें मेरी तू ही मंजिल मेरी,
तू मिली मिल गयी मुझको मंजिल मेरी,
तेरी चाहत में खोया रहा इस तरह,
था सफर जाने कब हमसफर हो गया।
कितना सूना है दिल का मेरे आसमाँ,
चाँद मेरा न जाने कहाँ खो गया।
प्रकाश पान्डेय “शाहिल”
प्रतापगढ़(उत्तरप्रदेश)
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