मॉरीशस में हिंदी

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मॉरीशस में हिंदी भाषा का इतिहास लगभग डेढ़ सौ वर्षों का है। स्वतंत्रतापूर्व काल में यह भाषा बीज रूप में थी। भोजपुरी बोली के माध्यम से हिंदी विकसित भाषा को करने में भो तो का विशेष योगदान रहा है। खेतों में कड़ी धूप में गूँजने वाले लोक गीतों में, शाम की “संध्या” में, रामायण-गान में, त्योहारों में, हर कही यह भाषा अबाध्य रूप से बढ़ती चली गई। बैठकाओं में हिंदी भाषा का अध्ययन-अध्यापन होने लगा। भारतीय आप्रवासियों ने अपनी भाषा तथा संस्कृति की शिक्षा को ही अपने बच्चों के उद्वार का उचित मार्ग माना। 1901 में महात्मा गांधी जी की प्रेरणा से ही भारतीय आप्रवासी अपने बच्चों को शिक्षा तथा राजनीति के क्षेत्र में अग्रसर करा पाए।

उन्हीं के कहने पर 1907 में मणिलाल डॉक्टर मॉरीशस आए। उन्होंने जी जान से मज़दूरों की सेवा की। भारत देश से मंगाई जाने वाली पुस्तकें तथा पत्र-पत्रिकाएँ भारतीय आप्रवासियों को हिंदी के और समीप लाने में सहायक बनी तथा उन्ही से प्रेरणा ग्रहण करके हिंदी पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित होने लगी। इनसे एक ओर जहाँ सामाजिक और राजनैतिक समस्याओं के विरूद्व संघर्ष आरंभ हुआ, वहीं मॉरीशसीय हिंदी साहित्य को अभिव्यक्ति हेतु नवीन मंच प्राप्त हुआ। मॉरीशस मित्र, आर्य-पत्रीका,नव-जीवन आदि पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से भारतीय हिंदी साहित्यकारों से लोग परिचित होते गए और मॉरीशस के हिंदी साहित्यकारों को अपना अस्तित्व मिला। शैक्षिक, धार्मिक तथा साहित्यिक संस्थाएँ उभरी और हिंदी का प्रचार-प्रसार ज़ोर-शोर से होने लगा। इसमें आर्य समाज, सनातन धर्म तथा हिंदी प्रचारिणी सभा के साथ ही अन्य कई संस्थाओं का बहुत बड़ा योगदान है। इस प्रकार मॉरीशस में पत्र-पत्रिकाओं, बैठकाओं तथा संस्थाओं के माध्यम से हिंदी का प्रचार-प्रसार हुआ। 1954 के मार्च महीने से पूर्ण रूप से हिंदी भाषा की पढ़ाई पाठशालाओं में आरंभ हो गई।

आज मॉरीशस में शिक्षा, साहित्य, मीडिया आदी क्षेत्रों में हिंदी भाषा का मुख्य स्थान है। शिक्षा के क्षेत्र में हिंदी भाषा को उचीत स्थान मिला है। प्राथमिक, माध्यमिक तथा विश्वविधालय के स्तर पर हिंदी भाषा एवं साहित्य की पढ़ाई होती है। स्कूलों तथा कॉलेजों में हिंदी से संबंिधत शैक्षणिक तथा सांस्कृतिक गतिविधियाँ आयोजित की जाती हैं ताकि छात्रों के बीच हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार हो सके और वे इसके प्रति अपनी रूचि दिखाएँ। एच.एस. सी. (Higher School Certificate) में हिंदी की परीक्षा में प्रथम स्थान पर आने वाले छात्रों को छात्रवृति भी दी जाती है ताकि वे हिंदी की उच्च शिक्षा अच्छे विश्वविधालयों में ग्रहण कर सकें। मॉरीशस विश्वविधालय एवं महात्मा गांधी संस्थान के सहयोग से बी ए,एम ए, पी जी सी ई, एम फ़िल एवं पी.एच.डी. की पढ़ई भी होती है। महात्मा गांधी संस्थान में हिंदी छात्रों द्वारा हिंदी सप्ताह आयोजित करने की प्रथा भी चल पड़ी है।

मॉरीशसीय साहित्य में हिंदी में ही सब से अधिक रचनाएँ उपलब्ध हैं। कविता, उपन्यास, कहानी, लधु कथा, निबंध, आलोचना आदि विधाओं में प्रकाशित अनेक रचनाएँ उपलब्ध हैं। कॉलेजों, मॉरीशस विश्वविधालय तथा कुछ भारतीय विश्वविधालयों में मॉरीशसीय रचनाओं का अध्यापन हो रहा है। भारत के बाद मॉरीशस ही वह देश है जहाँ सब से अधिक हिंदी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। मॉरिशस के गणमान्य साहित्यकारों ने ही हिंदी को स्थानीय तथा अंतराष्ट्रीय मंच में सम्मान दिलाया हैं। आज भी रचनाएँ रची जा रही हैं। युवा लेखकों को भी साहित्यिक गतिविधियों एवं प्रतियोगिताओं में भाग लेने तथा साहित्य सृजन करने के अवसर भी दिए जा रहे हैं।

मीडिया के क्षेत्र में भी मॉरीशस में हिंदी भाषा का एक अलग स्थान है। रेडियो से लेकर टीवी तथा इंटरनेट में भी हिंदी का प्रचार-प्रसार ज़ोर-शोर से हो रहा है। एम.बी.सी. के रेडियो तथा टीवी चैनलों में हिंदी समाचार प्रस्तुत किए जाते हैं। साथ ही साथ मनोरंजन, संस्कृति, धर्म, समाज, शिक्षा आदि विषयों पर भी हिंदी कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं। हिंदी को वैश्विक स्तर पर एक महान भाषा के रूप में स्थान दिलाने के लिए बॉलिवुड का भी मुख्य स्थान है। इसी कारण अहिंदी भाषियों की रूची हिंदी सीखने की ओर बढ़ रही है।मॉरीशस में भी हिंदी गानों, फ़िल्मों,धारावाहिकों तथा अन्य कार्यक्रमों के माध्यम से हिंदी भाषा के प्रति लोगों की रूचि बढ़ती जा रही है।

हिंदी भाषा के संवर्धन में मॉरीशस की अनेक संस्थाओं की अहम भूमिका रही है। ये संस्थाएँ हिंदी को बढ़ावा देने हेतु अनेक कार्यक्रम आयोजित करती है। कुछ संस्थाओं के नाम इस प्रकार है – हिंदी संगठन, विश्व हिंदी सचिवालय, हिंदी प्रचारिणी सभा, महात्मा गाँधी संस्थान, आर्य सभा मॉरीशस, इंिदरा गाँधी सांस्कृतिक केंद्र, हिंदी लेखक संध आदि। इन संस्थाओं ने हिंदी भाषा को शैक्षणिक, सांस्कृतिक तथा धार्मिक रूप से प्रचारित किया है। हिंदी संगोष्ठियों तथा अंतराष्ट्रय कार्यक्रमों के आयोजन के साथ ही हिंदी पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन भी इनके द्वारा होते आए हैं। सुमन, विश्व हिंदी समाचार, विश्व हिंदी पत्रीका, आर्योदय, दर्पण, वसंत, पंकज, भाल-सखा आदि पत्रिकाओं में हिंदी से संवंिधत रचनाएँ प्रकाशित की जाती हैं।

मॉरीशस में पिछले डेढ़ सौ वर्षों के अपने इतिहास में जिस प्रकार से हिंदी भाषा ने प्रगति की है उससे यह निश्चित ही है कि इसका प्रचार-प्रसार भविष्य में भी होता रहेगा। मॉरिशस में रोज़गार के लिए भी हिंदी के क्षेत्र में अनेक उपक्षेत्र हैं जैसे शिक्षा, मीडिया, प्रशासन आदि। स्कूलों और कॉलेजों के साथ ही विश्वविधालय में हिंदी पढ़ने वाले छात्रों की संख्या में हर वर्ष वृद्वि होती जा रही है। हिंदी से संबंिधत गतिविधियों में भाग लेने वाले प्रतिभागियों की संख्या भी संतोषजनक है। छात्र गण हिंदी-टंकण कार्य में भी रूचि दिखा रहे हैं। अनेक मॉरीशसीय हिंदी ब्लॉग भी उपलब्ध कराए गए हैं जिनके माध्यम से शिक्षक, छात्र गण एवं हिंदी प्रेमी एक ही मंच पर अपने विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं और अपनी रचनाओं को भेजकर हिंदी साहित्य में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।