इस जहाँ में ख़लिश मैं ही हूँ दीवाना

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salil saroj
इस जहाँ  में ख़लिश मैं ही हूँ दीवाना  या
रात की ख़ामोशी सुनता है कोई और भी
आसमान के नीदों में चहलक़दमी करके
धरती के  ख़्वाब बुनता  है कोई और भी
हवा  के ज़ुल्फ़ों से बिखरे आफ़ताबों को
ओंस की डाली में चुनता है कोई और भी
धूप के टुकड़ों से सिली मख़मली चादर
जिस्म पे अपने ओंढ़ता  है कोई और भी
फ़िज़ा के मदहोश होंठों से जाम पी कर
सुरमई आँखों को मूँदता है कोई और भी
#सलिल सरोज 
नई दिल्ली

matruadmin

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