उसी मन की तलाश में

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salil saroj
संसार के कोलाहल से
दूर
बहुत दूर
समंदर की लहरों पे बहता
रवानगी की कहानी कहता
बादलों की पीठ पर बैठ कर
अपनी ही धुन में रहता
है
मेरा मन
जो व्याकुलता का
पर्याय नहीं है
उद्विग्न मस्तिष्क का
कोई
राय नहीं है
वो
अभी भी
सद्यस्नाता की भाँति सुकोमल
बच्चों की हँसी सा मखमल
और हिलते पानी में बने
किसी बिम्ब की तरह झिलमिल
है
जो
मुझे याद दिलाता है कि
कभी
मैं भी
स्वछन्द था
थोड़ा उच्छृंखल
और
निर्बंध था
फिर
उसी मन की तलाश में
मैं निकल पड़ता हूँ
खुले आसमान में
विहग के समान
किसी शून्य की तलाश में
जहाँ मेरा पुराना मन
मेरे इंतज़ार में
न जाने  बैठा है
#सलिल सरोज
नई दिल्ली

matruadmin

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