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हमने देखे यहां रंग बदलते लोग
क़ामयाबी पर किसी की जलते लोग
अहसान फ़रामोश भी बहुत मिलेंगे
औरों के टुकड़ों पर पलते लोग
कामचोर हरामी बहुत निक्कमे
देखें कितने पैंतरे बदलते लोग
बातों का जिनकी नहीं कोई ठिकाना
किये अपने वादों से मुकरते लोग
संगीन गुनाहों पर भी लिप्त मिलेंगे
मीठी ज़ुबान से जहर उगलते लोग
-किशोर छिपेश्वर”सागर”
बालाघाट
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