अब मैं गुमशुदा होना चाहता हूं

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sushil duggad
जी लिया मैं बहुत दुनिया के लिए,
अब अपने लिए जीना चाहता हूं ।
ऐ  जिंदगी चल दूर बहुत दूर कहीं,
अब  मैं गुमशुदा होना चाहता हूं ।
देखी मोहब्बतें, नफरते रिश्तों की,
देखी दुनिया की दुनियादारी भी ।
देखी मतलबी, फरेबी जालसाजी,
देखी यारी ईमान और खुद्दारी भी।
उलझी  है जिंदगी हर उलझनों में,
अब सबसे जुदा होना चाहता हूं ।
ऐ जिंदगी चल दूर बहुत दूर कहीं,
अब  मैं गुमशुदा होना चाहता हूं ।
रंग  चुकी  है  कई रंगों में जिंदगी,
हर   रंग  अपना  रंग  जमाते  हैं ।
रंग  बदलती  इस दुनिया में देखा,
सब अपना-अपना ढंग बताते हैं ।
रंगीन बनके जी ली बहुत जिंदगी,
अब रंगों से विदा होना चाहता हूं।
ऐ जिंदगी चल दूर बहुत दूर कहीं,
अब  मैं गुमशुदा होना चाहता हूं ।
दौड़ा  बहुत  जिंदगी में दूर तलक,
हर मौसम को मैंने ललकारा था ।
कहीं  धूप छांव तो कहीं रात दिन,
हर  मंजर  को  मैंने स्वीकारा था ।
जीता रहा मैं मर के औरों के लिए,
अब खुद पे फिदा होना चाहता हूं।
ऐ  जिंदगी चल दूर बहुत दूर कहीं,
अब  मैं  गुमशुदा होना चाहता हूं ।
हासिल  हुए  हर ख्वाब जिंदगी के,
हर  मंजिल को मैंने ‘स्पर्श’ किया ।
बढ़ते  रहे कदम बस राहों में आगे,
पग  पग जिंदगी ने उत्कर्ष किया ।
नहीं ख्वाहिश कोई और जिंदगी में,
खुशी से अलविदा होना चाहता हूं।
ऐ  जिंदगी  चल दूर बहुत दूर कहीं,
अब  मैं  गुमशुदा  होना चाहता हूं ।
#सुशील दुगड़ “स्पर्श”
अंकलेश्वर(लुहारिया)

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