होती तो हैं हम सब में –
कई तरह की क्षमताएं
मगर सुप्त हो जाती हैं ,
अक्सर ये –
उपयुक्त माहौल के अभाव में
नहीं होता है जिसका हमको भान
क्योंकि –
चाहिए होता है इन्हें भी
कोई न कोई उत्प्रेरक , जो –
निखार सके हमारी
इन सुप्त क्षमताओं को
ताकि लांघ सकें , हम भी –
सौ योजन के समुद्र सी बाधा
हनुमान की ही तरह ।
यह केवल उदाहरण ही नही है –
है यह , वो सकारात्मक ऊर्जा
जो करती ही है विकसित
किसी की भी क्षमताओं को ।
मिले जब भी अवसर –
क्षमताओं को परखने का
रखें सकारात्मक भाव ,
और बनें सहायक ,
बनाने को एक और हनुमान ।
# देवेन्द्र सोनी , इटारसी