पानी में कागज की वो नाव चलाना, खेल खेलना और खिलाना.. मजे करते थे हम भरपूर, छल-कपट से थे दूर। खेल-खिलौने, हमारी मिट्टी, नाटक में चंदा मामा को लिखते थे चिठ्ठी.. चोर सिपाही,गिल्ली डंडा,चंगा अठ्ठा मास्साब हमसे कहते थे और पठ्ठा। बरसात में वो भीगना,धूप में वो खेलना, सर्दियों में […]
काव्यभाषा
काव्यभाषा
मैं हूँ प्राणी बिल्कुल सीधा-साधा, न झूठी क़समें,न झूठा वादा। मेहनतकश,आम आदमी-सा मैं, काम-से-काम,न धोखे का इरादा। हमेशा सीधेपन पर,मुझे गया ठगा, पर मालिकों से,किया न कभी दगा। जिंदगी गुज़ारी साधारण-सी, पेट मेरा भरा रहा सदा आधा। अब मुझे बनाया चुनावी हथियार, जैसे बनता है हर बार आदमी सीधा। भूख,धर्म,जातिवाद के […]