पिता, पिता ही नहीं, पिता बनकर पिता रुप में, पिता एक बहुत ही महान आत्मा होती है कर्मठता यदि उसकी कुछ कर नहीं पाती है,तो अन्तरात्मा उसकी सिसक-सिसककर रोती है। पिता परिवार का मुखिया, पालनकर्ता है, इसलिए पिता भरसक यह कोशिश करता है कि, पेट अपना चाहे भरे,न भरे पर […]