जन्नत के बहाने क्यों दोज़ख़ की तरफ़ ले जाते हो ए जिहाद वालों क्यों तुम मासूमो को बरगलाते हों। बताओ कौन से ख़ुदा ने कहा है पाक है क़त्ल-ए-इंसाँ ख़ुदाई में वो अपनी मोहब्बत करने को तुमसे कहता है। हूर की बात तुम करते हो जो जन्नत में मिलेगी पर क्यों छुपाते हो, दोज़ख़ भी न मिलेगा इस ख़ूनी खेल के बाद। इशरत-ए-इंसाँ है मोहब्बत में मिट जाना फिर क्यों नफ़रत में जल के औरों को जलाते हो। साजिशों में क्या रखा हैं गुनाहों के अलावा क्यों तुम इस कायनात में गड़बड़ी फैलाते हो। फ़राइज़ तले गुज़ारिश है तुमसे जिहाद वालों छोड़कर राह-ए-कुफ़्र अमन से ज़िंदगी बिता लो। #डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ Post Views: 619
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तारे घबराते हैं शायद इसीलिये टिमटिमाते हैं सूरज से डरते हैं इसीलिये दिन में छिप जाते हैं। चाँद से शरमाते हैं पर आकाश में निकल आते ह़ैं तारे घबराते हैं शायद इसीलिये टिमटिमाते हैं। लोग कहते हैं अंतरिक्ष अनंत ह़ै लेकिन मैंने देखा नहीं मैं तो केवल इतना जानता हूँ सूरज बादल में छिप जाता है चाँद बादल में छिप जाता है सो तारे जब डरते शरमाते होंगे बादल में छिप जाते होंगे। तारे घबराते हैं शायद इसीलिये टिमटिमाते हैं। #डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ Post Views: 398
माना कि हालात बेकाबू हो गए कई बार जब भी वक़्त नासाज हुआ हर बार भरोसा रखा मैंने या ख़ुदा तेरे भरोसे को क्या हुआ कभी लगता है सँभल गया कभी यों ही बिगड़ गया वक़्त ऐसा जैसे रेत का बुत मुठ्ठी से फिसल गया रोकना तो चाहा हमेशा पर लम्हा इतना अजीब है क्यों न समझ सका वो तड़प दिल की साथ रहकर भी छोड़कर तुम जहां से गए थे मैं आज भी वहीँ खड़ा हूँ यूँ तुम तो सम्हल गए होंगे मैं आज भी बिखरा पड़ा हूँ इस दिल में रहोगे ता-उम्र फिर क्यूँ डरते हो पाक है मोहब्बत मेरी यूँ नजरे चुरा के ना निकलो इंतिज़ार है तेरे इक इशारे का आगे खूबसूरत जहाँ पड़ा है तेरे बिना वर्ना दर्द का दरिया ‘राहत’ आँखों से बहता है #डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ Post Views: 520