एक अल्हड़ दीवाना कवि: राजकुमार कुम्भज

0 0
Read Time7 Minute, 13 Second

 

arpan jain

सहज, सौम्य और सरल जिनका मिजाज है, सबकुछ होते हुए भी फकीराना ठाठ, आजा़द पंछी की तरह गगन को नापना, मजाक और मस्ती की दुनिया से कविता खोजने वाले, अल्हड़ और मनमौजीपन में जिन्दादिली से जीने वाला, कविता लिखने के लिए केवल मुठ्ठी उठा कर नभ को पात्र भेजने का कहने वाला, जो बिना अलंकार के सरलता से कविता कह जाए, यदि अहिल्या की नगरी इंदौर में ऐसा कोई शख्स आपको मिलेगा तो वह जरूर अपना नाम राजकुमार कुम्भज ही बताएगा|

जी हाँ,  12 फरवरी 1947 को  इंदौर (मध्य प्रदेश) में जन्में और कविता जितने सरल, पानी जितने सहज और निर्लोभी, जिसे लेश मात्र भी यह घमंड नहीं हो कि वो ही है जिसकी कविता के सौन्दर्य के कारण सन 1979 में सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ द्वारा सम्पादित ‘चौथा सप्तक’ में शामिल अग्र कवियों में उनका नाम लिया जाता हो, जिनकी 20 से ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हो वही राजकुमार कुम्भज हैं।यह तो तय है कि मालवा की धीर वीर गंभीर रत्नगर्भा धरती ने राजकुमार कुम्भज जैसे रत्नों को जन्म देकर जरूर अभिमान किया होगा|

हजारों किस्से, सैकड़ो बातें, बीसियों विषय जिन पर कुम्भज जी बहुत कुछ सिखाते हैं, इस पहचान का नाम ही राजकुमार हो| ‘मिनी पोएट्री’ या कहें लघु कविता जैसा नवाचार कर साहित्य जगत में नई कविता को स्थान दिलाने वाले लोगों में अग्रणी कवि कुम्भज कविता का कुंभ है| वह न केवल साहित्य जगत में अपितु जीवन में भी राजकुमार ही रहे।

कुम्भज जी के जीवन के यथार्थ के प्रति विचार इतने आधुनिक है कि 1977 में पारम्परिक मान्यताओं एवं रूढ़ियों को तोड़ते हुए प्रेमविवाह किया, जो लिखा वही जीया भी। जवानी के दिनों में जींस-शर्ट और बड़े बक्कल वाला चौड़ा बेल्ट पहन बुलेट पर सवारी करने वाले बुलटराजा कुम्भज जिसका ठिकाना या कहें अनाधिकृत पता इंडियन कॉफ़ी हाउस हुआ करता था, जिसने प्रेम को लिखा है, जो प्रेम को जीया भी है और सत्य इतना कि जो किया बेझिझक बेबाक तरीके से बोल दिया, न लाग लपेट न डर|

साहित्य से लेकर राजनैतिक परिपेक्ष तक, देश से लेकर विदेश तक हर मुद्दे पर गहरी और मजबूत पकड़ रखकर अपने लेखन से बेबाक़ टिप्पणी देने वाले का नाम कुम्भज है।राजकुमार कुंभज समकालीन हिन्दी कविता के सबसे बड़े हस्ताक्षर है।

जो, जितना, हँसता हूँ मैं

उतना, उतना, उतना ही रोता हूँ

एक दिन एकांत में

एक दिन सूख जाता है भरा पूरा तालाब

कुबेर का खजाना भी चूक जाता है एक दिन

स्त्रियाँ भी कर देती हैं इनकार प्रेम करने से

उमंगों की उड़ान भरने वाले तमाम कबूतर भी

उड़ ही जाते हैं एक न एक दिन अनंत में

फिर रह जाता है एक दिन सिर्फ वह सच जो चट्‍टान

माना कि पहाड़ भी उड़ते थे कभी फूँक से

मगर अब उड़ता नहीं है पत्ता कोई शक नहीं कि बहती हैं हवाएँ…

बहती हवाओं की तरफ ही पूर्ववत शक नहीं कि पकती हैं फसलें…

पकती फसलों की तरह ही पूर्ववत शक नहीं कि झरती हैं पत्तियाँ..

झरती पत्तियों की तरह ही पूर्ववत मैंने सोचा मुझे हँसना चाहिए

मैं हँसा और निरंतर-निरंतर जोर-जोर से भी

फिर उतना, उतना, उतना ही रोका एक दिन एकांत में भी

जितना, जितना, जितना हँसा मैं

सार्वजनिक सभा में जितना, जितना, जितना भी हँसता हूँ मैं

रोता हूँ उससे कहीं ज्यादा।

 

ऐसी कविताओं के माध्यम से समाज को चिन्तन देने वाले जिन्दादिल, अल्हड़ और मस्ताने जो सुफियाना मिजाज से निज हृदयासन पर बैठाने वाले कवि है| फक्कड़ मिजाज और नई कविता में गहनता के साथ कम शब्दों में यथार्थ को बयाँ करने वाले राजकुमार कुम्भज जी की काव्य साधना प्रणम्य है|

वागेश्वरी की कृपा उन पर सदा बनी रहें और हम नौजवानों को सदैव यह दिवाकर अपनी काव्य रश्मियों से प्रकाश बाँटता रहे यही कामना करते हैं|

#डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’

परिचय : डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ इन्दौर (म.प्र.) से खबर हलचल न्यूज के सम्पादक हैं, और पत्रकार होने के साथ-साथ शायर और स्तंभकार भी हैं। श्री जैन ने आंचलिक पत्रकारों पर ‘मेरे आंचलिक पत्रकार’ एवं साझा काव्य संग्रह ‘मातृभाषा एक युगमंच’ आदि पुस्तक भी लिखी है। अविचल ने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज में स्त्री की पीड़ा, परिवेश का साहस और व्यवस्थाओं के खिलाफ तंज़ को बखूबी उकेरा है। इन्होंने आलेखों में ज़्यादातर पत्रकारिता का आधार आंचलिक पत्रकारिता को ही ज़्यादा लिखा है। यह मध्यप्रदेश के धार जिले की कुक्षी तहसील में पले-बढ़े और इंदौर को अपना कर्म क्षेत्र बनाया है। बेचलर ऑफ इंजीनियरिंग (कम्प्यूटर  साइंस) करने के बाद एमबीए और एम.जे.की डिग्री हासिल की एवं ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियों’ पर शोध किया है। कई पत्रकार संगठनों में राष्ट्रीय स्तर की ज़िम्मेदारियों से नवाज़े जा चुके अर्पण जैन ‘अविचल’ भारत के २१ राज्यों में अपनी टीम का संचालन कर रहे हैं। पत्रकारों के लिए बनाया गया भारत का पहला सोशल नेटवर्क और पत्रकारिता का विकीपीडिया (www.IndianReporters.com) भी जैन द्वारा ही संचालित किया जा रहा है।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

जनता बेहाल, सरकार मालामाल

Thu May 31 , 2018
केंद्र की भारतीय जनता पार्टी सरकार ने 26 मई को चार साल पूरे कर लिए हैं. इन चार सालों को लेकर भारतीय जनता पार्टी के नेता और सरकार अपनी कामयाबी के कितने ही दावे कर लें, लेकिन हक़ीक़त यही है कि हर मोर्चे पर केंद्र सरकार नाकारा ही साबित हुई […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।