आज फिर चाँद फीका सा क्यूँ है

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asha gupta
ख्याल तेरा बहार बनकर जो  आये
आना तेरा रोशन करता राह सारे
तब्बसुम की खिदमत में  हैं सितारे
आँखों में नमी देखा तुम्हारे
 सोचता हूँ  आज चाँद फिर फीका सा क्यूँ है..
दर्द मीठा-मीठा गम भी सहते सारे
 सनम ! पाक उल्फत है इसे कैसे संवारे
होतेे गान छिड़ते नये जो तराने
छूकर देखो बह रही  शर्मीली हवाएँ
गुनता हूँ आज फिर चाँद फीका सा क्यूँ है
दर्द से सौदा किसने किया हमारे
मन पंक्षी उड़ता अपने पंख पसारे
 कब रुका है जिंदगी की राह प्यारे
आसमां झुकता सा देखो ये नजारे
कहता हूँ आज  चाँद  फिर फीका सा क्यूँ है
#डॉ आशा गुप्ता”श्रेया”

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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