#डॉ आशा गुप्ता”श्रेया”
Read Time53 Second
ख्याल तेरा बहार बनकर जो आये
आना तेरा रोशन करता राह सारे
तब्बसुम की खिदमत में हैं सितारे
आँखों में नमी देखा तुम्हारे
सोचता हूँ आज चाँद फिर फीका सा क्यूँ है..
दर्द मीठा-मीठा गम भी सहते सारे
सनम ! पाक उल्फत है इसे कैसे संवारे
होतेे गान छिड़ते नये जो तराने
छूकर देखो बह रही शर्मीली हवाएँ
गुनता हूँ आज फिर चाँद फीका सा क्यूँ है
दर्द से सौदा किसने किया हमारे
मन पंक्षी उड़ता अपने पंख पसारे
कब रुका है जिंदगी की राह प्यारे
आसमां झुकता सा देखो ये नजारे
कहता हूँ आज चाँद फिर फीका सा क्यूँ है
Average Rating
5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%
पसंदीदा साहित्य
-
February 17, 2019
स्वेटर(कहानी संग्रह)
-
June 11, 2021
हाय रे डाटा
-
April 27, 2021
घबराकर नहीं मुस्कुराकर लड़े समस्या से
-
March 14, 2018
सुख