लफ्ज़ हैं आज गुमशुदा,
एहसास हो गए हैं अब तन्हा..
दिल की सच्चाई कितना भी चाहे बेपनाह,
पर खा रही है मात हर लम्हा..
हर जगह।
वक़्त बदल-सा जा रहा है,
शख्सियत भी अब तो जुदा है..
न जाने कहाँ सब खो गया,
जज़्बातों का कारवां छूट गया है।
अफ़साने भी अब करें किससे बयाँ,
सारा जहां अजनबी-सा लगता है..
गुमशुदा यूँ हुए हम इस आपाधापी में,
कि जहां अजनबी-सा लगता है।
अक्सर इस जहां को देखकर,
यही सोचा करती हूँ..
मतलबी यहां लोग बड़े हो गए,
सच्चाई का पहन के मुखौटा,
झूठ संग लिए फिरते हैं।
हँस रहा है तू मुझ पर या,
कोई फ़साना याद आया..
नसीहत जो दी है तूने,
सच्ची है या झूठी।
बातें तेरी दिल की गहराई से,
आई या नहीं..
लग रही अब यह दुनिया मुझे
बड़ी दोगली।
#साक्षी पेम्माराजू ‘स्वप्नाकाक्षी’
परिचय : बैंगलोर में निवास कर रही साक्षी पेम्माराजू ‘स्वप्नाकाक्षी’ का इंदौर से भी नाता है,क्योंकि मध्यप्रदेश के झाबुआ से इन्होंने अपनी पढ़ाई की है। बचपन से हिन्दी में कविताएँ लिखने का इनका शौक अब तो जुनून है,जो स्वप्नाकशी नाम से देखने में आता है। फिलहाल यह सॉफ़्टवेयर इंजीनियर के रुप में कार्यरत हैं।