आज अपराधी यहाँ बढ़ रहे,
क्रोध-कपट की चाहत है।..
नरसंहार और प्रहार से ये
धरती माता आहत है।
मस्तक में हो चंद्र शीतलता,
इसके लिए तुम कुछ तो बोलो..
अभिमान के वंशज बढ़ गए,
भोले अब त्रिनेत्र खोलो।
भावों में बढ़ रही मलिनता,
रह न पाती कहीं पवित्रता..
ऊंच-नीच और जात-पात में,
खो न जाए हमारी समता।
जटाओं से गंगाधारी पावन,
विचारों का झरना खोलो..
अभिमान के वंशज बढ़ गए,
भोले अब त्रिनेत्र खोलो।
ये शरीर निर्मोही काया,
फिर भी किसी को समझ न आया..
एक दिन यह स्वाहा होगा,
अपनों ने ही इसे जलाया।
भस्म होना है भौतिक सुख तो,
लगाकर भभूत, तुम भी डोलो..
अभिमान के वंशज बढ़ गए,
भोले अब त्रिनेत्र खोलो।
घोर कपटता रख बुराई करके,
जीवन जीते लोग..
हर किसी का विलास समझकर,
करते हैं जो इतना भोग।
निंदक और आलोचक को,
विष वमन कर आज तौलो..
अभिमान के वंशज बढ़ गए,
भोले अब त्रिनेत्र खोलो।
#प्रो.(डॉ.) श्यामसुन्दर पलोड़
परिचय : प्रो.(डॉ.) श्याम सुन्दर पलोड़ पेशे से प्राध्यापक हैं। आप इंदौर में संस्कार कॉलेज ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज में विभागाध्यक्ष एवं प्रशासक का कार्य देख रहे हैं। राष्ट्रीय कवि एवं प्रसिद्ध मंच संचालक होने के साथ ही
पूर्व में उपराष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत एवं सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रमेशचंद्र लाहोटी द्वारा मंच संचालन के क्षेत्र में सम्मानित हुए हैं।राष्ट्रीय स्तर पर वाद-विवाद प्रतियोगिता में विजेता वक्ता रहे हैं। समाचार पत्रों में स्तम्भकार के रुप में लेखन में सक्रिय है। टीवी चैनल पर भी आपके कई कार्यक्रमों का प्रसारण हो चुका है।